200 Year Old Dead Pillars। 200 साल पुराने मृतक स्तंभ

Dead Pillars
मृतक स्तंभ से आप क्या समझते है?

बस्तर जिले में गोंड समुदाय के द्वारा अपने परिजन के मृत्यु के बाद शव को जला दिया जाता है और उनके याद में एक स्थान पर पत्थर लगाए जाते है।ये रीत कई सालों से निभाया जा रहा है।प्रत्येक त्यौहार में इन पत्थरों अर्थात अपने पूर्वजों को मंद,सल्पी,चावल चढ़ाया जाता है।यू कहा जाए कि अपने हर कार्यक्रम में उनको शामिल किया जाता है।यहाँ सबसे ज़्यादा भास्कर के मृतक स्तंभ (Dead Pillars) देखने को मिलते है।

मृतक स्तंभ। Dead Pillars

भारतीय उपमहाद्वीप पर्यटन के परिदृश्य से उल्लेखनीय स्रोतों में से एक रहा है। भारत की प्राकृतिक बहुतायत और देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़े इसके मजबूत ऐतिहासिक आधार ने भारत और विदेशों से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।छत्तीसगढ़ राज्य दंतेवाड़ा के खूबसूरत जिले का दावा कर सकता है जिसे वर्ष 1998 में अस्तित्व में लाया गया था। दंतेवाड़ा में विभिन्न पर्यटक स्थल में गामावाड़ा के स्मृति स्तंभ आश्चर्यजनक रूप से जिज्ञासु और आश्चर्यजनक केंद्र रहा है,जहाँ एक स्थान पर कई पत्थर केवल अपने पूर्वज के याद में लगाए गए थे जिसमें भास्कर,ताती,कर्मा,पूनम,वासन के मृतक स्तंभ (Dead Pillars)आज भी मौजूद है।

Dead Pillars

लेकिन ये स्तम्भ केवल गमावाड़ा तक सीमित नहीं है बल्कि इस जनजाति के लोग छोटे छोटे हिस्सों में दंतेवाड़ा के कई गाँवो में बसे है और इस परम्परा को आज भी निभा रहे है।कुछ ऐसा ही दृश्य कवलनार में देखने को मिला जहाँ डेड़ सौ से भी ज़्यादा पत्थर गाढ़े गए है।

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इस गाँव में मौजूद है 200 साल पुराने मृतक स्तंभ। Dead Pillars

दंतेवाड़ा से क़रीब दस किलोमीटर की दूरी पर बसा है,गाँव कवलनार। इस गाँव में गोंड जनजाति की आबादी ज़्यादा देखने को मिलती है।ये प्रायः गोंडी भाषा में बातचीत करते है।गाँव वाले बताते है की सरकार अब उन्हें मुरिया जाति के अंतर्गत शामिल कर रही है।

मंगल वट्टी जो कवलनार का एक निवासी है बातचीत के दौरान उनके कई रीति रिवाजों के बारे में बताया।वट्टी कहते है की मृतक स्तंभ उनके पूर्वजों के याद के लिए बनाया जाता है कई लोग इसे क़ब्र भी कहते है।लेकिन ये कोई क़ब्रिस्तान या शमशान नहीं है ये सिर यादों के पत्थर है जो आगे आने वाली पीढ़ियों को उनकी पुरखो की याद दिलाएगा।हम भी नहीं जानते की ये कितनी पुरानी हो सकती है बस हम ये रीत को आगे भी ऐसे ही निभाते आ रहे है और आगे भी इसे ऐसे संजो कर रखना चाहते है।

मनी राम भी इसी गाँव के रहने वाले है इस कड़ी में वो बताते है की जब किसी ऐसे व्यक्ति की मौत हो जाती है जो इस समुदाय का सबसे प्रभावशाली और मुखिया हुआ करता था तो उसे ढोल के साथ विदा किया जाता है और उसके मृतक स्तम्भ को ख़ास तरीक़े से सजाया जाता है।

इतना ही नहीं मृत व्यक्ति क्या क्या करता था उसकी क्या क्या विशेषतायें थी वो सभी उसके स्तम्भ में चित्र के माध्यम से उकेरा जाता है।मृत को जलाने के लिए महिला और पुरुष दोनों के तरफ़ से लकड़ियाँ जमा की जाती है सबसे निचला हिस्सा पुरुष वर्ग का होता है और तीसरा लेयर महिलाओं का इस तरह जमा कर शव को जलाया जाता है।

महुआ के पेड़ के नीचे दफ़न किए जाते है नवजात शिशु

यदि गोंड समुदाय में नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है तो उसके लिए अलग प्रथा निभाई जाती है। चुकी बच्चे की मृत्यु एक शोक का विषय है इसलिए ये समुदाय भी इसे ख़ुशी से विदा नहीं करता जैसे वो वृद्ध के लिए करता है।शोक के साथ उसे माँ के दूध के साथ महुआ के पेड़ के नीचे दफ़न किया जाता है। एक हफ़्ते तक उसकी पैरेदारी की जाती है ताकि उसे कोई नुक़सान पहुँचा सके।

मृत्यु स्तंभ में आनागुंडा की भूमिका

कवलनार के गाँव वाले बताते है की मृत्यु परांत जीतनी भी रीति रिवाज होते है उसे आनागुंडा के द्वारा अदा की जाती है।शव को जलाने से लेकर उनके याद में पत्थर गाड़ने तक। कवलनार के गोपी अभी वहाँ के आनागुंडा है वो बताते है की प्रत्येक त्यौहार में इन पत्थरों अर्थात अपने पूर्वजों को मंद,सल्पी,चावल इनके द्वारा ही चढ़ाया जाता है।इनके अलावा इस रिवाज को और कोई भी नहीं कर सकता।

मृत्यु स्तंभ बया करती है व्यक्तित्व

मृतक स्तंभ में बने चित्र उसके व्यक्तित्व को बता सकते है क्यूँकि उसके चित्र के साथ साथ उसके हर आदत और क्रियाकलापों को उकेरा जाता है आप उस व्यक्ति को चाहे जीवंत ना देखे हो लेकिन बिना देखे भी आप उसकी कल्पना कर सकते है की वो जीवित कैसा रहा होगा।

मृत्यु स्तंभ अब सीमेंट के क्यूँ बनने लगे है?

वक़्त के साथ इस समुदाय के लोग भी विकसित हुए है कारण यही है की अपने पूर्वज के याद में वो सबसे अच्छा मृतक स्तम्भ बनाना चाहते है इसलिए आपको कही कही अब सीमेंट के भी मृतक स्तम्भ देखने को मिलगे लेकिन कवलनार में सीमेंट के बने स्तंभों के आगे छोटे या मध्यम आकर के पत्थर लगे हुए मिलेंगे।गाँव वाले बताते है की आकर्षक बनाने के साथ साथ वो पत्थर गाड़ने की प्रथा को भूले नहीं है।

Dead Pillars
Dead Pillars
सरकार से क्या क्या चाहती है ये समुदाय ?

मंगल वट्टी और मनिराम और कई बुज़ुर्ग महिला और पुरुषों से बात करने के बाद उन्होंने एक संदेश सरकार तक पहुचाने को कही जिस प्रकार गमावाड़ा को संरक्षित किया गया है वैसी सुरक्षा कवलनार के मृत्यु स्तंभों को भी दिया जाय।ये ज़रूरी इसलिए है की इसमें कई चीज़ें जो सालों से चलती आ रही है जो पुरानी है जो आज के दौर में अदृश्य हो चुके है उन्हें समेटे है बीच जंगल में मौजूद है।ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी ये महत्वपूर्ण हो जाता है।इन पत्थरों के नीचे हमारे पूर्वजों के किए गए इस्तेमाल चीज़ें गाढ़ी गई है।

ये कितनी पुरानी हो सकती है इसका अंदाज़ा भी हम नहीं लगा सकते।कुछ सालों पहले यहाँ पत्थर की खुदाई भी हुई है जिसका हमें बेहद दुःख है।वे आगे कहते है हमारा समुदाय जितना घर में नहीं रख सकता उतना दुगुना यह मौजूद होता है इसलिए इसका संरक्षण बहुत ज़रूरी हो जाता है।हालाँकि अभी हमारे समुदाय द्वारा देख रेख किया जा रहा है।लेकिन हम चाहते की सरकार की ओर से हमें ये सहयता दी जाय।

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