मृतक स्तंभ(Dead pillars) से आप क्या समझते है?
बस्तर जिले में आदिवासी समुदाय के द्वारा अपने परिजन के मृत्यु के बाद शव को जला दिया जाता है, फिर उनकी 13 वीं के बाद उनके लीये पत्थर ढूँडा जाता है इसके बाद सारी रस्म निभाई जाती है, जो भी वह कमा के गया, धान आदि को उसके याद मे चढ़ाकर उनके याद में एक स्थान पर पत्थर लगाए जाते है, वह उस व्यक्ति के याद मे समाधि जैसा रहता है।
जिसे गोंडी में “उर्स स्थल” भी कहा जाता है, यह रीत कई सालों से निभाया जा रहा है। आदिवासी समाज मे न केवल लकड़ी से पर “लकड़ी”, “सिमेन्ट” से भी बनते है मृतक स्तम्भ , कुछ परिवारों मे तो “पेड़” भी बनते है मृतक स्मारक। प्रत्येक त्यौजाता हार में इन पत्थरों अर्थात अपने पूर्वजों को मंद,सल्पी,चावल चढ़ाया जाता है।यू कहा जाए कि अपने हर कार्यक्रम में उनको शामिल किया जाता है।यहाँ सबसे ज़्यादा भास्कर के मृतक स्तंभ (Dead Pillars) देखने को मिलते है।
बस्तर के Dead pillars: विरासत और पर्यटन
भारतीय उपमहाद्वीप पर्यटन के परिदृश्य से उल्लेखनीय स्रोतों में से एक रहा है। भारत की प्राकृतिक बहुतायत और देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़े इसके मजबूत ऐतिहासिक आधार ने भारत और विदेशों से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।छत्तीसगढ़ राज्य दंतेवाड़ा के खूबसूरत जिले का दावा कर सकता है जिसे वर्ष 1998 में अस्तित्व में लाया गया था।

गामावाड़ा: Dead pillars की सबसे पुरानी शृंखला
दंतेवाड़ा में विभिन्न पर्यटक स्थल में गामावाड़ा के स्मृति स्तंभ आश्चर्यजनक रूप से जिज्ञासु और आश्चर्यजनक केंद्र रहा है, इसे सरकार द्वारा संरक्षित भी किया गया है, जहाँ एक स्थान पर कई पत्थर केवल अपने पूर्वज के याद में लगाए गए थे जिसमें भास्कर,ताती,कर्मा,पूनम,वासन के मृतक स्तंभ (Dead Pillars)आज भी मौजूद है।
लेकिन ये स्तम्भ केवल गमावाड़ा तक सीमित नहीं है बल्कि इस जनजाति के लोग छोटे छोटे हिस्सों में दंतेवाड़ा के कई गाँवो में बसे है और इस परम्परा को आज भी निभा रहे है।कुछ ऐसा ही दृश्य कवलनार में देखने को मिला जहाँ डेड़ सौ से भी ज़्यादा पत्थर गाढ़े गए है।
Read also – प्रकृति से जुड़े आदिवासीयों के खानपान
Watch also – छत्तीसगढ़ की सबसे महँगी मशरूम
स्तंभ लगाने की जगह
पालनार के रहने वाले लोकेश बताते है कि मृतक स्मारक को श्मशान घाट में नहीं गाडा जाता। वे आगे बताते है कि आदिवासी समाज में मृतक के शरीर को जलाने का रस्म कुछ इस प्रकार होता है कि हर परिवारों का जलाने का जगह एक ही होता है, मान लीजिए जैसे कुंजाम, मोडामी, वेट्टी, मंडावी, होगए उनका शव को जलाने का जगह एक ही होगा, अगर मान लीजिए की कुंजाम परिवार में से अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो उनका शव वहीं जलाया जाएगा जहां उनके परिवार मे से बाकी लोगों को जलाया जय है। वैसे ही हर परिवारों का शमशान घाट पे जलाने का जगह निर्धारित है।
आगे लोकेश जी बताते है की शव को जलाने के बाद दूसरे दिन बचा कूचा लकड़ी को जलाया जाता है उसके बाद 13 वीं होने के बाद उनके याद मे एक पत्थर गाड़ा जाता है शमशान घाट पे ही नहीं पर उसके सामने रोड के किनारे गाड़ा जाता है। पालनार मे हमे ऐसा ही कुछ दृश्य देखने को मिला जहां शमशान के सामने रोड के किनारे तमो, मोदमी, मांडवी, वेट्टी, कुनजाम आदि के पत्थर गाड़े हुए दिखे।
“पेड़” भी बनते है स्मृति चिन्ह
जब आगे लोकेश जी से हमारी बात हुई तो वे एक बेहद अनभिज्ञ और आशर्यजनक बात बताते है की पेड़ों को भी बनाया जाता है मृतक स्तम्भ। आदिवासी समुदाए के कुछ परिवारों मे अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, उनका सारा अंतिम क्रिया करने के बाद एक पेड़ को उनके याद मे ,स्मारक के रूप मे पूजा जाता है जैसे अगर मै बात करू बीजापुर के कूटरू गाँव के कुटमा परिवार की तो अगर उनके परिवार मे किसी की मृत्यु होजाती है तो उनका एक पेड़ होगा जिसको वें मृतक स्मारक बनाएंगे और इसके बाद 13वीं होने के बाद उनके नाम से वहाँ पत्थर गाड़ेंगे। एक और जानने वाली बात, उनके परिवार मे किसी की भी मृत्यु होगी तो वे उसी पेड़ को स्मारक बनाएंगे, जैसे की अगर “बीजा पेड़” मे कर रहे है तो उसी विशिस्ट पेड़ नहीं पर बीजा के ही दूसरे पेड़ मे करेंगे।
तो कैसे होते है लकड़ी के स्मारक?
कुछ परिवारों मे पत्थर से नहीं पर लकड़ी से बनाया जाता है स्मारक। पत्थर के स्मारक मे किसी भी प्रकार के चित्र नहीं उकेरे जाते पर लकड़ी के स्मारकों मएफ चित्र भी उकेरे जाते है। जैसे की कोई पशु पक्षी खास तौर से चिड़िया और बैल बनाया जाता है, बस्तरिया आर्ट भी बनाया जाता है। बेहद खूबसूरती के साथ उसे सजाया जाता है।
इस गाँव में मौजूद है 200 साल पुराने मृतक स्तंभ। Dead Pillars
दंतेवाड़ा से क़रीब दस किलोमीटर की दूरी पर बसा है,गाँव कवलनार। इस गाँव में गोंड जनजाति की आबादी ज़्यादा देखने को मिलती है।ये प्रायः गोंडी भाषा में बातचीत करते है।गाँव वाले बताते है की सरकार अब उन्हें मुरिया जाति के अंतर्गत शामिल कर रही है।
मंगल वट्टी जो कवलनार का एक निवासी है बातचीत के दौरान उनके कई रीति रिवाजों के बारे में बताया।वट्टी कहते है की मृतक स्तंभ उनके पूर्वजों के याद के लिए बनाया जाता है कई लोग इसे क़ब्र भी कहते है।लेकिन ये कोई क़ब्रिस्तान या शमशान नहीं है ये सिर यादों के पत्थर है जो आगे आने वाली पीढ़ियों को उनकी पुरखो की याद दिलाएगा।हम भी नहीं जानते की ये कितनी पुरानी हो सकती है बस हम ये रीत को आगे भी ऐसे ही निभाते आ रहे है और आगे भी इसे ऐसे संजो कर रखना चाहते है।
Dead pillars की ओर एक अंतिम यात्रा ऐसी भी
मनी राम भी इसी गाँव के रहने वाले है इस कड़ी में वो बताते है की जब किसी ऐसे व्यक्ति की मौत हो जाती है जो इस समुदाय का सबसे प्रभावशाली और मुखिया हुआ करता था तो उसे ढोल के साथ विदा किया जाता है और उसके मृतक स्तम्भ को ख़ास तरीक़े से सजाया जाता है।
मृत को जलाने के लिए महिला और पुरुष दोनों के तरफ़ से लकड़ियाँ जमा की जाती है सबसे निचला हिस्सा पुरुष वर्ग का होता है और तीसरा लेयर महिलाओं का इस तरह जमा कर शव को जलाया जाता है।
महुआ के पेड़ के नीचे दफ़न किए जाते है नवजात शिशु
यदि गोंड समुदाय में नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है तो उसके लिए अलग प्रथा निभाई जाती है। चुकी बच्चे की मृत्यु एक शोक का विषय है इसलिए ये समुदाय भी इसे ख़ुशी से विदा नहीं करता जैसे वो वृद्ध के लिए करता है।शोक के साथ उसे माँ के दूध के साथ महुआ के पेड़ के नीचे दफ़न किया जाता है। एक हफ़्ते तक उसकी पैरेदारी की जाती है ताकि उसे कोई नुक़सान पहुँचा सके।
मृत्यु स्तंभ में आनागुंडा की भूमिका
कवलनार के गाँव वाले बताते है की मृत्यु परांत जीतनी भी रीति रिवाज होते है उसे आनागुंडा के द्वारा अदा की जाती है।शव को जलाने से लेकर उनके याद में पत्थर गाड़ने तक। कवलनार के गोपी अभी वहाँ के आनागुंडा है वो बताते है की प्रत्येक त्यौहार में इन पत्थरों अर्थात अपने पूर्वजों को मंद,सल्पी,चावल इनके द्वारा ही चढ़ाया जाता है।इनके अलावा इस रिवाज को और कोई भी नहीं कर सकता।
मृत्यु स्तंभ बया करती है व्यक्तित्व
मृतक स्तंभ में बने चित्र उसके व्यक्तित्व को बता सकते है क्यूँकि उसके चित्र के साथ साथ उसके हर आदत और क्रियाकलापों को उकेरा जाता है आप उस व्यक्ति को चाहे जीवंत ना देखे हो लेकिन बिना देखे भी आप उसकी कल्पना कर सकते है की वो जीवित कैसा रहा होगा।
मृत्यु स्तंभ अब सीमेंट के क्यूँ बनने लगे है?
वक़्त के साथ इस समुदाय के लोग भी विकसित हुए है कारण यही है की अपने पूर्वज के याद में वो सबसे अच्छा मृतक स्तम्भ बनाना चाहते है इसलिए आपको कही कही अब सीमेंट के भी मृतक स्तम्भ देखने को मिलगे लेकिन कवलनार में सीमेंट के बने स्तंभों के आगे छोटे या मध्यम आकर के पत्थर लगे हुए मिलेंगे।गाँव वाले बताते है की आकर्षक बनाने के साथ साथ वो पत्थर गाड़ने की प्रथा को भूले नहीं है, जैसे की गामावाड़ा मे जो स्मारक संरक्षित किया गया है वे सारे पत्थर के ही है। हालाकी देखा देखि मे सिमेन्ट से बने हुए मृतक स्तम्भ भी गाड़े जारहे है। गाँव मे अगर कोई सक्षम है तो वो उस मृतक के याद मे अच्छा स सिमेन्ट से स्मारक बनाता है उसकी तस्वीर भी उसमे लगाई जाती है।
दुरला समाज का दक्षिणी प्रभाव
दुरला समाज की मुख्य रूप से कोन्टा, बीजापुर, पटनम, यानि की उसूर ब्लॉक मे आते है। यें स्केजूल्ड ट्राइब (ST) मे ही आते है पर उनकी भाषा, उनका कल्चर पूरा साउथ का ही है। लोकेश बताते है की बीजापुर मे जो दुरला लोग है वें मट्ट से बनाते है मृतक स्मारक, पत्थर का भी प्रयोग होता है पर ज्यादातर मट्ट मे ही डाला जाता है।
कुटरू, बोदली और कंदेली के स्तम्भ | Dead pillars
बीजापुर मे कुटरी अलग क्षेत्र होगया जो की राजा महाराजाओं का भी गड़ रहा है, फिर पुटरु जाने के रोड मे बोदली और कंदेली होगए इन गांवों मे भी पत्थर का प्रयोग बहुत काम मिलेगा न के बराबर, यहाँ लगभग सभी स्मारक लकड़ी मे ही डाले गए है, जिसमे सुंदर चित्रकारी भी की गई है जैसे की बस्तर आर्ट का ढोल, पशु, पक्षी इत्यादि।

“देव गुड़ी” जैसी श्रद्धा
जैसा की “देव गुड़ी” या “माता गुड़ी” जो की बस्तर के आदिवासी समुदाए का गाँव मे पूजा स्थल होता है वैसा ही मृतक स्तम्भ का भी विशिस्ट जगह होता है जहां ये प्रथा निभाई जाती है। मृतक स्तम्भ का भी उतना ही महत्व है इनके जीवन मे जितना की देव गुड़ी का।
छत्तीसगढ़ का आखिरी गाँव पोंडे के Dead pillars
कुटरु जाने के रोड पर बीजापुर मे बेदरे के बाद इंद्रावती नदी पड़ता है और उसके बाद छत्तीसगढ़ का आखिरी गाँव पड़ता है “पोंडे” जो की इंद्रावती मे पूल नहीं होने के कारण, हालाकी अभी वहाँ कैम्प लगा हुआ है और पूल के निर्माण का कार्य चल रहा है, पर कानेक्टिविटी की समस्या होनसे के कारण गाँव मे हर चीज़ महाराष्ट्र की सरकार द्वारा ही लगाया हुआ है। वहाँ पे भी भारी मात्रा मे मृतक स्तम्भ देखने को मिलते है जो की मुख्य तौर से “लकड़ी” के ही बने हुए है। जो की देखने मे बेहद आकर्षित और सुंदर लगते है, चित्रकारी से भरे हुए, मन को भा लेने वाले।

सरकार से क्या क्या चाहती है ये समुदाय ?
मंगल वट्टी और मनिराम और कई बुज़ुर्ग महिला और पुरुषों से बात करने के बाद उन्होंने एक संदेश सरकार तक पहुचाने को कही जिस प्रकार गमावाड़ा को संरक्षित किया गया है वैसी सुरक्षा कवलनार के मृत्यु स्तंभों को भी दिया जाय।ये ज़रूरी इसलिए है की इसमें कई चीज़ें जो सालों से चलती आ रही है जो पुरानी है जो आज के दौर में अदृश्य हो चुके है उन्हें समेटे है बीच जंगल में मौजूद है।ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी ये महत्वपूर्ण हो जाता है।इन पत्थरों के नीचे हमारे पूर्वजों के किए गए इस्तेमाल चीज़ें गाढ़ी गई है।
ये कितनी पुरानी हो सकती है इसका अंदाज़ा भी हम नहीं लगा सकते।कुछ सालों पहले यहाँ पत्थर की खुदाई भी हुई है जिसका हमें बेहद दुःख है।वे आगे कहते है हमारा समुदाय जितना घर में नहीं रख सकता उतना दुगुना यह मौजूद होता है इसलिए इसका संरक्षण बहुत ज़रूरी हो जाता है।हालाँकि अभी हमारे समुदाय द्वारा देख रेख किया जा रहा है।लेकिन हम चाहते की सरकार की ओर से हमें ये सहयता दी जाय।
आप इन्हें भी पड़ सकते है
प्रकृति से जुड़े आदिवासीयों के खानपान
मोहरी बाजा के बिना नहीं होता कोई शुभ काम
बस्तर के धाकड़ समाज में ऐसी निभाई जाती है शादी कि रश्मे
Pingback: Mati Kala Kendra 2022
Pingback: cock fight 2022
Pingback: Gotul 2022
Pingback: Famous 7 Shiv Temple of Bastar
Pingback: goncha - Bastar's second biggest festival Goncha 2022