भंगाराम मेले (Bhangaram Mela) में कौन शामिल होता है
Bhangaram Mela : सुरडोंगर ये गाँव कभी सुरों के निवास स्थल हुआ करते थे. ऐसा यहाँ के गाँव वालो का कहना है…वो बताते है की इसलिए इसका नाम सुर डोंगर पड़ा . कोंडागांव जिले की आराध्य देवी इसी गाँव में रहती है . गाँव पहाड़ो के निचे है ऊपर पठारों से भरे घने जंगल और खुबसुरत झरने मौजूद है .भंगाराम मंदिर के जाने के रास्ते पर टाटामारी पठार है.
दिसम्बर के महीनों में टाटामारी बेहद खुबसूरत दीखता है जब बादल जमीन पर उतरते है ऐसा लगता है मानों गाँव वाले सच ही कहते है की यहाँ कभी सुरों का निवास हुआ करता था. इनके नाम से इस मेले का आयोजन किया जाता है . इस मेले में बारह परघना के देवी देवता शामिल होते है जिसमे ललित कुवर ,नरसिंह नाथ ,भीमा देव , कुवर पाठ, बूढी माता , सीतला माता , नरदिन जैन समेत कई देवी देवता शामिल होते है .
भंगाराम देवी का आहान कौन करता है .
कोदूराम सिरहा भंगाराम देवी के सिरहा है इनके शारीर में माता समाती है और ये मेला शुरू होता है .राजेश्वरी वेदव्यास कोदूराम जी के परिवार की मझली बहु है वो बताती है कि माता के शरीरमें प्रवेश के पश्चात् वो सीधे पुलिस स्टेशन जाती है वो भी चुनरी से सजे डोली में जिसे केवल हल्बा जातिके लोग उठाते है .
भंगाराम देवी का मेला होने के बाद ही यहाँ के सभी छोटे छोटे गाँव में मेले की दरकार शुरू होती है या यु कहिये माता सभी को आज्ञा देती है सभी को मेला करने की इस मेले में आस पास के सभी गाँवो से लोग आते है और मेले में शामिल होते है .
भंगाराम जात्रा में देवी लेती है सबकी पेशी .
भादो के महीने में लगने वाला भंगाराम जात्रा बेहद अनोखा होता है . हम से कई लोग आस्तिक है कई नास्तिक है तो कई प्रायोगिक तरीके से सोचते है .. पर विश्वास न करने वाले लोगो के लिए शायद ये अच्चम्भित करने वाला मेला साबित हो सकता है .
इस मेले में भंगाराम देवी सभी देवी देवताओ की पेशी लेती है उनके साल के कार्यों का ब्यौरा लेती है यदि उन लेखा जोखा में किसी देवी देवता की गलती निकलती है तो माता उसे निष्काषित भी कर देती है .यहाँ उनके कार्यों को कुछ समय के लिए रोक देती है .
इस मेले को लेकर एक कहानी भी बताई जाती है की कई साल पहले बुढा देव इस जात्रा में शामिल होने आया था लेकिन वो एक अच्छा देव नहीं था इसलिए माता ने उसे इस पवित्र जात्रा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी .
इस जात्रा में ये सारे निर्णय भंगाराम देवी झूले पर बैठ कर करती है .इस जात्रा में शामिल होने के लिए कुछ नए देवी देवता भी आते है ताकि वो अपना टेस्ट दे सके की वो अच्छे देवी या देवता है और वो गाँव वालो के अच्छे के लिए काम करेगे
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भंगाराम मेले में सभी देवी देवताओ के झंडे होते है .
बस्तर में अदृश्य शक्तियों को मानने के पीछे भी प्राकृतिक जुडाव दीखता है यहाँ सभी के आंगा देव लकड़ियों से बने होते है मोर के पंखो के बिना इनकी सजावट अधूरी है .वही चांदी की पट्टी पहनाइ जाती है .और लगभग सभी देवो का अपना एक रंग का झंडा होता है ये झंडे लाल, पीले , सफ़ेद,नारंगी रंगों से बने होते है .
भंगाराम मेले में इन गाँवो से शामिल होते है देवी देवता .
नर्सिंग देव – बड़े डोंगर
ललित कुवर – उडीद गाँव
कुवर पाठ – केशकाल
नारदिन जैन – केशकाल
बूढी माता – बाजार पारा
सीतला माता – सुरडोंगर
हालिया – जामगांव
बटराली – छिपरेल
ललादर- कोरगांव
गाढ़ा जाति के लोग देव पाठ बजाते है .
बस्तर में महारा और गाढ़ा जाती के लोग देव पाठ बजाते है लेकिन भंगाराम मेले में कोरगांव से इस जाती के लोग आकर देव पाठ बजाते है जिसके बाद ही इस मेले का सुभारम होता है .इस मेले में सभी देवो का अलग अलग सुर होते है इस समूह में कन्हिया लाल मोहरी बजाते है ,तिलकराम दपडा बजाते है , आनंद राम निशान और सुखदेव राम तासा ,कवल मरकाम नगाड़ाबजाते है .
इस देवपाड़ में पहले दंतेश्वरी माँ के लिए बजाया जाता है फिर बूढी माँ ,हिंगलाजिन,गोंडपाठीन , कारी कनकलीन, गाडिया बाबा , खांडा डोकरा , कुवर पाठ , नर सिंग नाथ , ललित कुवर , देव रथ , राउत नाचा पाड़ अंतिम में विदाई पाड़ के साथ समापन किया जाता है .