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Gotul । गोटूल

क्या है गोटूल प्रथा । What is gotul tradition
   इतिहास मे साहित्यकारों और इतिहासकारों ने गोटूल(gotul tradition) को अपने नजरिए से परिभाषित किए है। उनमे से एक डॉ हाडर्सन कहते है कि गोटूल का तात्पर्य युवाओ का ऐसा वर्ग जो एक साथ समुदाय में रह कर ज्ञान की प्राप्ति करता है। तो सवाल ये है कि आखिर गोटूल क्या है? गोटूल पुरातत्व काल का ऐसा संस्थान है जहाँ किशोर(चेलिक)-किशोरियों(मोटियारी) को सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक जीवन यापन करने की शिक्षा मिलती थी एवं अन्य कर्तव्यों का प्रशिक्षण देने के लिए एक उपयोगी पाठशाला है।

Gotul
Gotul

इतना ही नही आखेट में सफलता प्राप्त करने के लिए नवयुवकों की सृजनात्मक शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रकल्पित धार्मिक रीति रिवाजों की संस्था है। नृत्यगायन, कथा – कहानियों के माध्यम से वे अपने जीवन मे कुछ सीखते हैं जिन्हें भावी जीवन में चरित्रार्थ करते हैं। यह उन्हें जीवन की हर स्थिति से कैसे लड़ना है, कैसे खुद को कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बना कर उसका सामना करना है, अपना जीवन कैसे व्यापन करना है कैसे अपने माता पिता से दूर होकर सब काम स्वयं करना।

पुरातत्व काल मे लोग अपने बच्चो को गोटूल में महज 9-10 साल की उम्र से ही भेज देते थे ताकि वे वहाँ दी जा रही शिक्षा का अध्ययन कर अपना जीवन व्यापन कर सके और आत्मनिर्भर रहे। जब तक उनकी अंतिम परीक्षा नही हो जाती और मुरसेनाल(टीचर) उन्हें आज्ञा नही दे देते वहां से जाने की, तब तक वे गोटूल नही छोड़ सकते थे। गोटूल (gotul tradition) की बनावट कुछ इस प्रकार से है कि वह गाँव के बीचों बीच स्थित एक मिट्टी, गारे,लकड़ी,पत्थर,घासफूस का बना घर है ।

जहाँ अन्दर सिर्फ 2 विशाल कमरो की व्यवस्था होती थी ,एक कमरा लड़को के लिए ओर एक कमरा लड़कियों के लिए , बीच में बहुत बड़ा आंगन रहता था जहाँ खेल प्रतियोगिता , नृत्य – गायन इत्यादि संपन्न हुआ करते थे । ये कहना गलत नहीं होगा की गोटूल (gotul tradition) एक ऐसा शिक्षा का केंद्र जिसकी शुरुआत लिंगो ने की जहां युवा पीढ़ी अपने ज्ञान और तर्को से जीवन जीने की कला मे पारंगत होते है।

गोटूल न केवल व्यवहारिक ज्ञान का केंद्र बल्कि जीवन जीने की कला सीखने के लिए वो माध्यम है जहा संगीत,हंसी ठिठोली और परम्पराओं से लोग सीखते है। गोटूल (gotul tradition) छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले मे मुरिया और गोंड जनजाति आज भी निभाई जाती है । गोटूल एक मिट्टी या बांस से बना एक मकान नुमा झोपड़ी के समान नजर आता है । जो मुरिया ओर गोंड जनजाति के संस्कृति का बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम हिस्सा है यह संस्कृति छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र मध्यप्रदेश ओर आन्ध्र्प्रादेश के पड़ोसी क्षेत्र मैआज भी कायम है ।

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गोटूल प्रथा । gotul tradition
  गोटूल गाँव के किनारे बास या मिट्टी की बनी झोपड़ी होती है गोटूल को सुंदर बनाने के लिए उसके दीवारों को रनरोगन कर के उस पर चित्र करी भी की जाती है कही बार गोटूल मै दीवार की जगह खूंला मंडप होता है।

गोटूल आज भी छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आंद्रप्रदेश मे परंपरागत तरीके से निभाई जाती है। बस्तर के नयननार और पहाड़ो से घिरे गाँव खड़का के साथ साथ कांकेर मे आज भी इसकी झलक देखी जा सकती है। गोटूल गोंड मुरिया जनजाति द्वारा सामाजिक धार्मिक सांस्कृति परंपरा है।

वही बस्तर मै गोटूल की प्रथा वर्तमान समय से पारंपरिक रूप से केवल नारायणपुर जिले मे चल रहा है। लेकिन इस आधुनिक युग मे गोटूल की प्रथा पहले कि अपेक्षा अब धीरे धीर कम और सिमटती जा रही है। छत्तीसगढ़ मे गोंड और मुरिया जनजाति लगभग छत्तीसगढ़ के आधे से ज्यादा जिले मे निवास करती है लेकिन ये केवल नारायणपुर जिले के कुछ ही गावों या कांकेर जिले के गांवो मे ये प्रथा देखने को मिलती है।

इस बात मे दो राय नहीं है कि गोटूल पहले जैसा नहीं रहा क्यूकी पहले गोटूल युवा रात भी बिताया करते थे लेकिन अब ये चंद घंटो मे समाप्त हो जाता है। या यु कहिए धीरे धीरे ये केवल नृत्य तक ही सीमित होता जा रहा।

गोटूल मे चेलिक मेटियारी किसे कहते है । Who is called Chelik Matiyari in Gotul?
यह परंपरा इस जनजाति के किशोरो को शिक्षा देने के उदेश्य से शुरू किया गया था। यह एक अनूठा अभियान है, गोटूल दिनचर्या मे युवा दिन मे शिक्षा लेकर घर गृहस्थी तक के पाठ पढ़ते है और ढलते सूरज के साथ मनोरंजन के लिए नाच गाना करते है। जिसमे गीत गोंडी मे गाया जाता है ,ढ़ोल ,माँदर, के धुन मे घुगरु के थाप से सभी थिरकते है। 
मुरिया जनजाति के बच्चे जैसे ही 10 साल के हो जाते है, गोटूल के सदस्य बन जाते है गोटूल मे शामिल लड़कियो को मोटियारी और लड़को को चेलिक कहते है। और लड़कियो के प्रमुख को बेलोसा ओर लड़के के प्रमुख को सरदार कहते है। 
गोटूल मै किशोर -किशोरियों के अलावा केवल उनके शिक्षक ही प्रवेश कर सकत है गोटूल मै शिक्षा मनोरंजन ओर कामकाज के अलावा गोटूल का उदेश्य नोवजवानों को व्यापक गोंड समुदाय का हिस्सा बनाना भी होता है जिससे उन्ने अपने परम्पराओं ओर जीमेदारियों का समय रहते अहसास  हो सकें यह संस्था गोंड जनजाति के पवित्र देवता लिंगो पेन को समर्पित है। 
गोटूल का इतिहास क्या कहता है ?। What does the history of Gotul say?
आदिवासी किंवदती को माने तो, लिंगो आदिवासी मुरिया जंजातियों के एक बहादुर पूर्वज ओर सर्वोच्च देवता थे। जिन्होने गोटूल संस्कृतिक संस्था का निर्माण किया ये गोटूल के संस्थापक भी है । आदिवासी समाज मै कोई भी महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य गोटूल के सदस्यों की सक्रिय भागीदारी के बिना नही होता था। गोटूल,मुरिया  और गोंड आदिवासी समाज के लिए एक धार्मिक ओर सामाजिक केंद्र है। गोटूल को आरंभ से ही प्रभावी के रूप मे मान्यता मिलती रही है, इसे ऐसी संस्था के रूप मै देखा जाता था जिसकी भूमिका गोंड जनजाति की मुरिया शाखा को संगठित करने मै प्रभावी ओर प्रमुख रही है। 
gotul motiyarin
gotul motiyarin
क्या होता है गोटूल। What is Gotul?
  • गोटूल मनोरंजन का केंद्र राहा है जिसमे प्रत्येक रात्री नृत्य गीत- गायन कथा वाचन एवं विभिन तरह के खेल खेले जाते थे।
  • गोटूल मे किसी भी तरह के हो रहे गाँव मै सामाजिक कार्य जैसे विवाह, मृत्यु, निर्माण कार्य आदि मै श्रमदान किया जाता था।
  • युवा -युवतियों को सामाजिक दायित्व के निर्वहन की शिक्षा दी जाती थी भावी वर वधू को विवाह पूर्व सिखा दी जाती थी।
  • गाँव मे किसी भी विपत्ति का सामना एक एक जुट होकर किया जाता था।
  • अनुशासित जीवन जीने की सीख दी जाती थी।
  • वाचित परम्पराओं का नित्यप्रसार किया जाता था।
  • इतिहास ओर कार्य लिंगो सर्वोच्च देवता पहले गोटूल के संस्थापक थे।
  • अलग अलग क्षेत्र मै गोटूल के परम्परा मै अंतर होता है ।
  • गोटूल एक आदिवासी युवा छात्र वास है।
  • जो मिट्टी ओर लकड़ी के दीवारों से घिरी एक विशाल झोपड़ी के रूप मै होती थी।

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गोटूल नियमों से चलता है । gotul’s rules
जिस प्रकार वर्तमान के स्कूल के अपने नियम होते है ताकि शांति से किसी भी कक्षा का संचालन किया जा सके ठीक वैसे ही गोटूल नियम और कानून हुआ करते है। गोटूल मे प्रत्येक चेलिक को प्रतिदिन लकड़ी लाना आवश्क होता है। मोटियारिन के लिए पनेय बना कर देना आवश्क होता है। अपने वरिष्ठों का सम्मान करना तथा कनिष्टों के प्रति विनम्र होना अवश्क है। संस्था द्वारा दिये गये कार्य करना अनिवार्य होता है। मोटियारिनों के लिए आवश्क है की वह गोटूल के अंदर बाहर साफ सफाई रखे। गाँव के किसी भी काम मै गोटूल की सहमति से सहायक होना आवश्क होता है। गोटूल तथा गाँव मै शांति बनाये रखने मै सहयोगी होना आवश्क है। 
गोटूल के नियमों का उल्लंघन मै दंड का प्रावधान। Provision of punishment for violation of the rules of Gotul
गोटूल के नियमो उल्लंघन करने पर दोषी को दंड का भागी होना पड़ता है। गोटूल के नियमो का पालन नही होने पर उनके गलती के अनुसार बड़ी या छोटी शक्तियाँ दिये जाने का प्रावधान है गोटूल के नियकों का पालन नही करने से उसे छोटी या बड़ी सजा दीजाती है। 
छोटी सजा जैसे लकड़ी लेकर आना सभी सदस्य युवको के लिए आवश्क होता है।किन्तु कोई सदस्य लकड़ी लाने मै चूक जाता है तब उसे छोटी सजा दी जाती है।  जैसे छोटी सजा के रुप मै पाँच से दस रुपये तक के आर्थिक दंड से दंडित किया जाता है।  किन्तु यदि दोषी चेलिक आर्थिक दंड के भूगतान देने की स्थिति मे ना हो तो उसे शाररिक दंड भोगना पड़ता है। 
यदि गलती ज्यादा हो तो शाररिक ओर आर्थिक दोनों दंड भोगना पड़ता है, शाररिक दंड मै बेंट सजा सुनाई जाती है। कभी कभी काफी बड़ी सजा के तौर पर दोषी चेलिक को उकडू बिठा कर उसके दोनों घुटनों को ओर कोहनियों के बीच रुलरनुमा एक मोटी सी गोल लकड़ी डाल दि जाती है। 
उसके बाद उस पर कपड़े को ऐठ कर बनाई गई बेंट से उसकी देह पर प्रहार किया जाता है। मोटियारिनों के लिए अलग किस्म का दंड का प्रवधान होता है जैसे मोटियारिनि ने साफ सफाई के लिए अपने साथी का हाथ ना बटाये तो उसे छोटी सजा दि जाती है। 
दोषी पर कुछ दिनों के लिए गोटूल मै प्रवेश मै प्रतिबंध लगाया जाता है।  बड़ी सजा दोषी को गोटूल से निष्काषित कर उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाता है।  ऐसे चेलिक /मोटियारी के घर परिवार मे होने वाले किसी भी कार्य मै गोटूल के सदस्य सहयोग नही करता है।  इस तरह के कठोर नियमो के कारणो से गोटूल के नियमो की अनदेखी करने की हिमत कोई नही करता है।   
गोटूल आज के परिवेश मे जीने कि कला सिखाती है । Gotul teaches the art of living in today’s environment.
     आज भी युवा पीढ़ी विश्व भर के आदिम जनजातियों मे किशोर किशोरियों का भावी जीवन उन्न्त बनाने के लिए उन्हें उचित अवसर दिये जाते है। भारतीय आदिम समाज मैं भी कुछ ऐसी नीति रीति है। जिसमें जनजाति समुदाय समाज के युवा जीवन की झलकियां देखने को मिलती है। जिसमे गोटूल (gotul tradition)का दर्शन होता है।  
बस्तर मैं गोटूल की प्रथा वर्तमान समय से पारंपरिक रूप से चल रही है लेकिन इस आधुनिक युग मैं गोटूल की यह प्रथा धीरे धीरे समाप्त होती जा रही है ये कहना गलत नहीं होगा यह संस्था सामाजिक नियम से बंधे हुए हैं। संगठन की भावना का विकास  सामाजिक दायित्वों के निर्वाह का पाठ हस्त कला का ज्ञान एक जुट होकर विपत्ति का सामना करने की सीख नृत्य गान का प्रसार जीवन की अनुशासन का सीख और उसका महत्व सिखाती है।      
gotul chelik
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गोटूल के पदाधिकारी । officials of gotul

गोटूल(gotul tradition) के पदाधिकारी भी होते है जो अपने अपने पदों पर रहकर अपना कार्ये करते । है गोटूल मैं सारा काम प्रजातांत्रिक तरीके से होता है पदाधिकारियों से कार्तव्य मैं हूई चूक से उन्हे भी दंड से गुजरना पड़ता है।

यह अधिकारी अलग अलग विभागो के लिए बनाए जाते है, इनके नाम इस प्रकार होते है कोटवार तहसीलदार कनिसबील (कोंस्टेबल ) टुलोसा, बेलेसा , अतकरी, बुदकरी इन सब के मुखिया को दीवान कहा जाता है। गोटूल मैं समाजी रीति रिवाज और नियनों की शिक्षा दी जाती है इसमैं मनोरंजन का स्थान गोंण होता है ।

गोटूल युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर,आत्मबल और जीने की अद्भुत कला सिखाती है ।। Gotul teaches the young generation self-reliance, self-confidence and wonderful art of living.
 भारत के सबसे बड़े जनजाति संथाल के बाद दूसरी सबसे बड़ी जनजाति गोंड की है ।गोटूल पूरातत्व काल कि ऐसी शिक्षा प्रणाली संस्थान है, जहा किशोर किशोरियों को सामाजिक राजनीतिक धार्मिक जीवन यापन करने कि शिक्षा दी जाती है। इसके साथ अन्य कार्तव्य का प्रशीक्षण देने के लिए एक उपयोगी पाठशालाके रूप मे स्थित है।  इतना ही नही आखेट मैं सफलता प्राप्त करने के लिए नवयूवको कि सृजनात्मक शक्ति को बढ़ाने के लिए एक धार्मिक रीति रिवाजों कि संस्था भी कहा जा सकता है। नृत्य गान कथा कहानियो के माध्यम से वे अपने जीवन मैं कुछ सिखते हैं। यह उन्हे जीवन के हर स्थिति से कैसे लड़ते है कैसे खुद को कठिन से कठिन परिस्थितियों मे धैर्य बना कर उसका सामना सिखाया जाता है।                                                                          
        

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Nisha Yadav, bastar villager
Nisha Yadav। Researcher। bastar villager

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