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जानवरों के सींग से होता है यहाँ मातागुड़ी का शृंगार

Peston
पूनम वासम
“गोरनाकारी चेन्द्री बाई लक्का बुढ़ी माता । Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata

माँ हमेशा अपने बच्चों की परवाह करती है, उनपर स्नेह लुटाती है, फिर चाहे उसके बच्चे कितने ही लापरवाह हो, स्वार्थी हो या फिर नासमझ !माँ को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता उसकी नजरें हर संभव अपने बच्चे पर टिकी होतीं हैं! ग्राम देवी बोलते हुए लगता है जैसे सारे गाँव की माँ का नाम किसी ने इस एक नाम के साथ समाहित कर दिया हो!

हमारे देवी- देवता उतने ही सीधे व सरल हैं जितने की हम, हमारे देवता पेड़ के झुरमुट के नीचे भी उतने ही प्रसन्न रहते हैं जितना संगमरमर से बने चिकने आसान पर बैठकर! हमारे देवी- देवता, हमेशा हमारे बीच उसी तरह निवासरत रहते हैं जैसे कोई घर -परिवार का मुखिया रहता हो! बहुत ज्यादा ताम-झाम की जरूरत कभी पड़ी ही नहीं! गाँव की सीमा पर बाँस की बनी कुटिया या घास-फूस की छत वाली कोई छोटी सी जगह भी मिल जाये तो हमारे देवता वहीं अपना ठिकाना बना लेते हैं.

Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata
Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata

जैसे कि जिला बीजापुर की “गोरनाकारी चेन्द्री बाई लक्का बुढ़ी माता” (Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata ) यह गोरना मनकेली कि ग्राम देवी हैं! गाँव की सीमारेखा से लगा हुआ इनका छोटा सा मंदिर है, माता को ईंट पत्थरों के भीतर कैद होकर रहना नहीं भाता उन्हें तो आजादी पसन्द है! गाँव के बिल्कुल तिराहे चौक पर बड़ी ही शान्त मुद्रा में बैठी हुई गाँव घर की हर एक गतिविधि पर अपनी पैनी नजर रखती हैं, यहाँ स्थित माता की मूर्ति काले पत्थरों से बनी हुई है.

काली माँ की इस प्रतिमा का सौन्दर्य अद्भुत है।बिल्कुल जीवन्त स्वरूप में यहाँ माँ विराजी हुईं हैं!आँखें पनीली सी लगती हैं, इन्ही आँखों से मनकेली गोरना के लोग अपने गांव का इतिहास देखते आ रहे हैं।! ग्रामीणों की लाचारी व उनकी मुखबधिरता की एक मात्र गवाह बनी गोरनाकारी माता जानती हैं कि उसके बच्चे किस दर्द व यातना भरे जीवन से गुजर रहे हैं.

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“गोरनाकारी चेन्द्री बाई लक्का बुढ़ी माता”( Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata ) के विषय में माता के पुजारी ‘हपका हूँगा’ कहते हैं कि कई वर्षों से माता (Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata ) इसी तरह यहाँ विराजमान है, पुरखे बताते हैं कि गाँव में जब माता का आगमन हुआ तब गाँव के ही लखा, रामडू, गुजडू, भीमडू, और माँझी इन पाँच व्यक्तियों में माता का पुजारी बनने को लेकर विवाद हो गया किंतु माता ने इनमें से किसी को भी पुजारी का दर्जा देने से इंकार कर दिया.

ऐसी मिथक कथा है कि एक बच्चा चोर जिसका नाम हुजु था वह माता के सामने बैठकर प्रार्थना कर रहा था कि उसे उसके काम में बरकत मिले तभी “गोरनाकारी चेन्द्री बाई लक्का बुढ़ी माता” ने क्रोधित होकर उसे “डेंगुर” से पूरी तरह ढंक दिया.

दूसरे दिन गाँव के ही हपका परिवार का एक सदस्य माता की पूजा के लिए मातागुड़ी पहुँचा तो उसने देखा वहाँ एक बहुत बड़ा डेंगुर है, हपका ने डेंगुर को तोड़कर उसके भीतर कैद बच्चा चोर को बचा लिया, माता हपका के इस कार्य से प्रसन्न हो गईं और उन्होंने हपका को अपना पुजारी घोषित कर दिया!कहा जाता है तब से लेकर आज तक हपका परिवार के लोग ही माता की सेवा आराधना करते आये है.

  Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata
Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata

ग्रामीणजनों का मानना है कि “गोरनाकारी चेन्द्री बाई लक्का बुढ़ी माता”और माई दंतेश्वरी दोनों बहनें हैं! गोरनाकारी माता बड़ी बहन है तथा दंतेश्वरी माई छोटी बहन।!ऐसी भी मान्यता है कि गोरनाकारी माता की दो पुत्रियां एवं एक पुत्र हैं! इन तीनों में से बड़ी पुत्री जैतालूर में तथा मंझली पुत्री बीजापुर चिकटराज मंदिर परिसर में हैं! छोटे पुत्र को माता अपने साथ रखती हैं.

ग्रामीण बताते हैं कि माता अभी तक उसी स्थान पर स्थित हैं जहाँ पहले थीं, माता को जगह परिवर्तन करना पसंद नहीं या यूं कहें कि माँ अपने बच्चों को छोड़कर कहीं और जाना नहीं चाहती! जिस स्थान पर माता का निवास है वहीं पास में एक नाला बहता है कहते हैं कि इस नाले का पानी कभी नहीं सूखता, यह नाला “नागालामु पहाड़ी” पर स्थित स्त्रोत से बहकर गोरना तक पहुँचता है.

माता को बहते हुए जल से स्नान करना पसंद है इसलिए इसी बहते हुए नाले के पानी से माता को रोज नहलाया जाता है! चावल व हल्दी से स्नान कराने के बाद विधि विधान से उनकी पूजा की जाती है! मान्यता है कि ग्रामीण जब भी शिकार करने जंगल जाते है माता से आशीर्वाद लेकर जाते हैं इसलिए शिकार में मिलने वाले जानवरों के सींग वाला भाग माता को चढ़ावा के रूप में चढ़ाया जाता रहा है.

यह एक अद्भुत संसार है जहाँ मातागुड़ी में सजावट के नाम पर रंग, बिरंगे- झंडे, झालर नहीं, कपड़े नहीं, नहीं कोई ताम- झाम, सिवाय मृत जानवरों के सींग के अलावा कुछ भी नहीं! हिरन, बारहसिंगा, नीलगाय, चीता, जंगली भालू आदि जानवरों के सींग मातागुड़ी में सजे हुए हैं!मंदिर निर्माण पर गाँव वालों का कहना है कि माता को पक्का मंदिर परिसर नहीं पसन्द उन्हें खुले में रहना और अपने आस- पास घटित सारी घटनाओं की जानकारी रखना पसंद है.

यह ग्राम देवी हैं इसलिए गाँव की हर गतिविधि पर इनकी नजर रहती है गाँव वालों के सुख में सुखी व दुःख में दुखी होने वाली इस “गोरनाकारी चेन्द्री बाई लक्का बुढ़ी माता”(Gornakari Chendri Bai Lakka Budhi Mata) को हमारा भी प्रणाम है।

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