पेस्टनजी नौरोजी की प्रेम कहानी। Pestonji Naoroji’s love story
1948 में बस्तर आए पेस्टनजी नौरोजी (Pestonji Naoroji) की प्रेम कहानी मानों इस बस्तर के घने जंगल में दफ़न हो गई।
“प्रेम कहानी में एक लड़का होता है एक लड़की होती है कभी दोनों हँसते हैं कभी दोनों रोते हैं” यह गीत जितनी बार भी सुनती हूँ मेरा दिल धक से करने लगता है, मैं सोचती हूँ क्या सचमुच प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि हजारों मील दूर बैठी कोई प्रेमिका अपने प्रेमी के मन की बात समझ जाए।
प्रेम की जब भी बात होती है, लैला-मजनूं, रोमियो-जूलियट और शीरीं-फरहाद जैसे प्रेमियों का नाम हमारी जुबान पर आ जाता है क्या कभी हमने सोचा है कि इनके अलावा भी ऐसी बहुत सी प्रेम कहानियाँ हैं जिन के विषय में कोई नहीं जानता जबकि उनका अंत भी उतना ही दुखद और मन को दहला देने वाली कहानियों के साथ हुआ।
ऐसी ही एक कहानी है 1948 की जब 1948 में महाराजा प्रवीर के मेहमान बन कर मुम्बई से बस्तर आये पारसी व्यापारी पेस्टनजी नौरोजी (Pestonji Naoroji) की. पेस्टजी ने जंगली भैंसे के शिकार में रुचि दिखाई तो उन्हें महाराज ने कुटरू के जंगलों में शिकार के लिए भेज दिया. उस समय बस्तर में वन भैसों का शिकार करना बड़ी उपलब्धि की तरह माना जाता था।
पेस्टनजी नौरोजी बहुत ज्यादा उत्साहित थे कि वह वन भैसे का शिकार करेंगे और उसकी खाल में भूसा भर के उसे अपने साथ ले जाएंगे.आज जहाँ कुटरू बस्ती है वहीं चौराहे पर कभी घना जंगल हुआ करता था, पेस्टनजी नौरोजी एक अर्दली के साथ उस जगह पर मचान बना कर शिकार करने के लिए तैयार थे जैसे ही वन भैसा उनकी तरह आता दिखाई दिया उन्होंने उस पर गोली चला दी, गोली लगते ही वन भैसा दर्द के मारे तड़प उठा.नीचे आकर एक गोली और उन्होंने भैसे को मारी भैसा दर्द से तड़प उठा वन भैसे ने पलट कर पेस्टनजी को दबोच लिया और तब तक मारता रहा जब तक उनकी मौत नहीं हो गई।
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और इस तरह पेस्टनजी तथा वैन भैसे दोनों का ही दुखद अंत हो गया. पेस्टनजी की मौत की खबर से उनकी पत्नी जो कि पारसी धर्म की थी उन्होंने कुटरू आकर पेस्टनजी का मकबरा वहीं बनवाया जिस जगह पर उनकी मौत हुई थी.पेस्टनजी की पत्नी के विषय में कुटरू के लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने पति के मक़बरे की देख भाल के लिए वहाँ के लोगों को पैसे भी दिए।
पेस्टनजी Pestonji ) की पत्नी तो भारी मन से बस्तर से लौट गईं परन्तु पति के मक़बरे की देख -भाल के लिए तथा मक़बरे पर दिया जलाने के नाम पर वह हमेशा पैसे भेजती रहीं यह सिलसिला कई वर्षों तक चला शायद उनकी मौत तक.पुरातत्व विभाग, स्थानीय जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन चाहे तो धूमिल होते कुटरु के इस इतिहास को अब भी सुरक्षित संरक्षण करके बचाया जा सकता है।
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