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ढोलकाल । Dholkal

20 साल पहले का ढोलकाल । Dholkal Ganesh

दंतेवाड़ा के एक छोटे से गाँव है फरसपाल, यहाँ ज्यादातर गोंड जनजाति रहती है कर्मा ,भास्कर लिखने वाली आबादी यहाँ ज्यादा देखने को मिलती है . फरसपाल से सटे ढोलकाल (Dholkal Ganesh) की पहाड़ियों से गुजर कर गणेश की प्रतिमा को देखा जा सकता है जो लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित 1000 साल पुरानी मूर्ति है .

एक किंवदंती लगातार सोशल दुनिया में फैलती गई इस मूर्ति के बारे में साल 2012 के बाद लोग इसे जानने लगे यहाँ तक ये भी कहा गया की इसे आस पास के जिले या गाँव के लोग भी परिचित नहीं थे . बस्तर विलेजर की संपादक रेणुका सिंह की मुलाकात जब मकान नंबर 43/3 रहने वाले मोहन खरे जी से हुई जो यहाँ कई सालो से रह रहे है . उन्होंने इस पर खास टिप्पणी की …

Dholkal Ganesh
Dholkal Ganesh

मोहन जी बताते है की साल 2001 में उनका ढोलकाल (Dholkal Ganesh) की पहाड़ियों में जाना हुआ था . वो कहते है की ढोलकाल के बारे में ये कहना गलत है की साल 2012 के बाद लोग इसे जानने लगे मै बीस साल पहले वहा गया था .लेकिन उसकी जानकारी हमें उससे भी पहले से थी .

मोहन जी पेशे शिक्षक है और उस पहाड़ियों में अपने स्कूल के बच्चो के साथ जाना हुआ था .इस टूर में उनके साथ उनका परिवार ,मित्र भी शामिल थे .ढोलकाल का जिक्र सुनते ही वो घने जंगल पक्षियों की मधुर आवाज और पहाड़ो से बहते पानी के शोर के बारे में बताने लग गए .

वो बताते है कि जब उन्होंने पहली बार ढोलकाल के पहाड़ो में विद्यमान गणेश (Dholkal Ganesh) की प्रतिमा को देखा तो बेहत आकर्षक करने वाले थे और मूर्ति के ठीक सामने शिव लिंग मौजूद था .वो आगे कहते हुए थोडा चुप हुए और कहा की अब जब सोशल मिडिया में उस प्रतिमा को देखता हु तो उसमे वो बात नहीं रही जो पहले थी मूर्ति खंडित हो चुकी है और मूर्ति के सामने मौजूद शिव लिंग भी नहीं है .

विशाल जंगल भी अब कम घने नजर आते है बस्तर की खूबसूरती इन जंगलो में लिप्त है यहाँ के झरने ,एतिहासिक स्थल ,पहाड़ ,लोहे के खदान ,जनजातीयां यहाँ के खूबसूरती को चार चाँद लगाती है और यहाँ के लोगो को यहाँ के हर स्थल के बारे में पता होता है पर वो किसी कारण सबसे कहते नहीं है ताकि उसका दुष्परिणाम न हो इसका ये मतलब ये नहीं की इस गुप्त स्थलों के बारे बस्तरवासियों को कुछ पता ही नहीं .

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क्या है ढोलकाल का रह्स्य । What is the secret of DholKal?

कतियाररास में रहने वाले भूपेंद्र ठाकुर का बचपन यही बिता है .सालो पहले दंतेवाड़ा के एक छोटे से गाँव पण्डेवार इनका पूरा परिवार रहता था और पहाड़ के उस पार उनके रिश्तेदारों का वो साक्षात्कार के दौरान कहते है कि ढोलकाल ( Dholkal Ganesh) में मौजूद प्रतिमा को बचपन से देखते आ रहे है .

यहाँ आसपास के गाँव केतुलनार,अलनार,मिडकुलनार ,गोदपाल ,फरसपाल के लोग इस पहाड़ी से गुजरते है .यहाँ तक की बीच मझदार में एक ऐसी जगह है जहा पत्थरों से बना एक बड़ा ढेर है जहा लोग गुजरते हुते पत्ते चढ़ाते है और वहा विश्राम भी करते है .

ये हमारे लिए कोई नई या बड़ी बात नहीं है क्युकि बस्तर के घने जंगलो में मूर्तियों का मिलना आम है .या यु कहिये कि यहाँ लोगो के खेतो में भी मुर्तिया निकली है जिसे मैंने अपने आखो से देखा है .भूपेंद्र जी आगे कहते है इन जंगलो में टिकुर से कई औषिधियाँ अब भी मिलते है.

Dholkal Ganesh
Dholkal Ganesh

पहले गाँव में पारद की योजना की जाती थी और हर घर से एक सदस्य का शामिल होने अनिवार्य हुआ करता था . मुझे याद है बचपन में मै इस पारद जाने वाले समूह का हिस्सा हुआ करता था(जंगली जानवरों का शिकार) और इन जंगलो को बहुत करीब से देखा है . वो आगे बताते है कि ढोलकाल की पहाड़ियों से जब आप किसी का नाम पुकारते है तो वो नाम वापस लौटकर आपको सुनाई देती है जैसे ढोलक की आवाज कानो में घर कर जाती है थी ठीक वैसे .

किंवदंती है कि एक बार भगवान परशुराम भगवान शिव से मिलना चाहते थे। हालाँकि, भगवान शिव ने भगवान गणेश को रक्षक के रूप में नियुक्त किया था, जिन्होंने परशुराम को अंदर नहीं जाने दिया। जैसे ही परशुराम ने जबरदस्ती प्रवेश करने की कोशिश की, गणेश ने उन्हें यहां बैलाडीला पर्वत श्रृंखला में पृथ्वी पर फेंक दिया।

जब परशुराम को होश आया, तो उनके और गणेश के बीच युद्ध छिड़ गया। युद्ध के दौरान, परशुराम ने अपना हथियार, फरसा  (लोहे से बना एक प्रकार का हथियार) निकाला और गणेश का एक दांत काट दिया। इसलिए, गणेश को एकदंत भी कहा जाता है ; पहाड़ी के सबसे निकट के गाँव का नाम फरसपाल (परशुराम के हथियार से लिया गया नाम) था। यह भी कहा जाता है कि, क्योंकि परशुराम का फरसा यहां गिरा था, बैलाडीला पर्वत श्रृंखला लौह अयस्क से समृद्ध हो गई थी।

हालांकि, कोई नहीं जानता कि यह बेहद भारी और सुंदर नक्काशीदार गणेश मूर्ति ( Dholkal Ganesh) कब और कैसे इतने घने जंगल में पहाड़ी की चोटी पर स्थापित की गई थी। पुरातत्वविदों का मानना ​​है कि इस क्षेत्र में नागवंशी शासन के दौरान 9 वीं 11 वीं शताब्दी में इस मूर्ति को बनाई गई थी .

पास की पहाड़ी की चोटी पर सूर्य देव को समर्पित एक मूर्ति था, लेकिन अब कुछ भी नहीं बचा है; स्थानीय लोगों का कहना है कि लगभग 15 साल पहले सूर्य देव की मूर्ति चोरी हो गई थी।

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ढोलकाल का नाम दुनिया तक कैसे पंहुचा

पहले केवल सीमित स्थानीय लोग इस स्थान से परिचित थे , ढोलकल गणेश (Dholkal Ganesh) ने देश भर में ध्यान आकर्षित किया जब एक स्थानीय पत्रकार बप्पी लहरी ने 2012 में इसे सोशल नेटवर्क के जरिये देश और दुनिया तक पहुचाया .

हालांकि, जनवरी 2017 में, गणेश की मूर्ति अचानक गायब हो गई। जांच करने पर, मूर्ति पहाड़ी के तल पर पाई गई, जो 56 टुकड़ों में टूटी हुई थी; वास्तव में दर्दनाक और खतरनाक तलाशी अभियान के बावजूद मूर्ति के सभी टूटे हुए हिस्से को बरामद नहीं किया जा सका।लेकिन उन खोज में शिव लिंग को नहीं खोजा जा सका .

बाद में, पुरातत्वविदों की एक टीम ने सभी उपलब्ध टुकड़ों को एक साथ लाया और उसी पहाड़ी की चोटी पर मूर्ति को फिर से स्थापित किया। आज भी मूर्ति पर टूटे हुए टुकड़ों के वे निशान देखे जा सकते हैं।

ढोलकाल कैसे पहुचे ?

ढोलकल गणेश ट्रेक पूरे साल भर किया जा सकता है। हालांकि, सभी मौसमों में अनुभव काफी अलग होता है।

chhattisgadh – Raipur – Jagdalpur – Dantewada – Faraspal – Dholkal

ढोलकल पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले दंतेवाड़ा शहर पहुंचना होगा। दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ के दक्षिणी क्षेत्र के मुख्य शहर जगदलपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। जगदलपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 300 किलोमीटर दूर है। रायपुर से जगदलपुर और दंतेवाड़ा के लिए निजी कैब और सार्वजनिक बसें दोनों आसानी से उपलब्ध हैं।

ढोलकाल के सफ़र को रोमांचित तरीके से करने के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते है ….

ढोलकल के सबसे नजदीकी गांव फरसपाल दंतेवाड़ा शहर से करीब 11 किलोमीटर दूर है। फरसपाल से थोड़ा आगे ढोलकल बेस है.बस्तर विलेजर की टीम आपको ढोलकाल के हर छोटे बड़े किस्सों और कहानियो.के साथ आपके रात जंगल के करीब कैम्प में आपका अनुभव करा सकती है .

Dholkal Ganesh
Dholkal Ganesh
ढोलकाल ट्रेक की खासियत क्या है ?

इस ढोलकाल ट्रेक के दौरान आप बस्तर के रहन सहन से वाकिफ हो सकते है यदि आपके पास एक अच्छा गाइड हो तो वो आपको प्रतिमा तक पहुचते पहुचते बस्तर के खान पान से परिचय करवा सकता है .जंगल काफी घना है इसलिए इस जंगल में वो सबकुछ मिलता है जिससे बस्तर वासी के घर के रसोई में पकता है .

जंगल में आपको सियाड़ी के पत्ते देखने को मिलेगे जिससे यहाँ के आम लोग पत्तल बनाते है .बेल , तिखुर से लेकर कई खाने की चीजे और औषिधी के जानने के इछुक हो तो ये ढोलकाल ट्रेक आपके लिए शानदार हो सकता है .

वैसे इसे पहले बरहा गुडा कहा जाता जाता था .वो इसलिए क्युकि पहले यहाँ जंगली सूअर की तादाद ज्यादा हुआ करती थी .लेकिन अब ये सामान्य है .जंगल के आधे रास्ते में पानी की आवाज सुनाई देगी ये पानी बारिश के मौसम और गर्मी दोनों ही वक्त बहती है .

वैसे बारिश के मौसम में अगर आप ये ट्रेक (Dholkal Ganesh) करते हो तो आपको एक बादल और जमीन का एक सुखद नजारा देखने को मिल सकता है .जंगल के बीच एक बड़ा झुला मौजूद है जो दिखने में बेहद खूबसूरत है .

Dholkal Ganesh
Dholkal Ganesh (तरुण कुर्राम,शकील रिज़वी , रेणुका सिंह )

जंगल में कई पक्षियों की आवाज सुबह सुनाई देती अगर आप ये (Dholkal Ganesh) ट्रेक सुबह करते है तो सूर्य की किरणों के साथ आपको प्राकृतिक का एक अजब शांति और सुकून को महसूस कर पायेगे.

ट्रेक की शुरुआत से पहाड़ी की चोटी तक, ट्रेक मार्ग लगभग 4-5 किमी एक तरफ है। इस पुरे ट्रैक में सच ये है की ट्रेक थोड़ा कठिन है क्योंकि इसमें स्थिर झुकाव शामिल है। वास्तव में, यह निश्चित रूप से कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है क्योंकि 100-200 मीटर की चढ़ाई का अंतिम चरण बेहद तकनीकी और खतरनाक है क्योंकि किसी को कुछ खड़ी चट्टानों पर चढ़ना पड़ता है।

हालांकि, ट्रेक के मुख्य आकर्षण – विशाल चोटी-घर, प्राकृतिक पेड़ के झूले, बहते पानी का रिसाव , घने घने पेड़ और लताएँ – पूरे ट्रेक को सुखद और रोमांचक बनाते हैं।और अंत में, ऊपर से देखने लायक ही है!

जब आप ये ट्रैक पूरा करके वापस लौटेगे तो आपको यहाँ के देशी स्टाइल के खाने का लुफ्त उठा सकते है .

इस ट्रैक में क्या बदलाव आया है ?

20 साल पहले भी लोग इस ट्रैक किया करते थे लेकिन स्थानीय लोगों के बीच ढोलकल हमेशा से धार्मिक महत्व का स्थान रहा है; लेकिन, 2012 में इसकी पुनः खोज के बाद, यह स्थान एड्रेनालाईन के दीवाने लोगों के लिए लोकप्रिय आकर्षण बन गया।

ऊपर से घाटी के बेहतरीन नज़ारों के अलावा, ढोलकल घने जंगलों के बीच एक बेहतरीन ट्रेक रूप में मौजूद है जिसमें सूरज की रोशनी भी पूरी तरह से प्रवेश नहीं कर सकती है.

इस पुरे टैक में केवल मूर्ति में बदलाव देखा गया जो अब जुड़ तो गई है लेकिन फिर भी खंडित ही है .लेकिन स्थानीय लोगो का कहना है की अब वो रोमांच देखने को नहीं मिलता जो बीस साल पहले या उससे पहले हुआ करता था .

  • Dholkal Ganesh

जो भी हो लेकिन इस ट्रैक को करने के लिए लोग विदेशो से भी यहाँ आते है और इस जंगल का अनुभव करते है .इस जंगल में अब जानवरों की तादाद कम हो गई है .लेकिन बन्दर और चिड़ियों की मौजूदगी यहाँ महसूस की जा सकती है .

ढोलकाल ट्रेक को करने का सबसे अच्छा समय

यदि आप धुंध भरे पहाड़, बादलों से ढकी चोटियाँ, बूंदा बांदी पानी, गीली मिट्टी की मिट्टी की महक और ताज़ी नहाई हुई हरी पत्तियों से प्यार करते हैं, तो ढोलकल घूमने के लिए मानसून (जुलाई से सितंबर) आपके लिए सबसे अच्छा समय है। ट्रेकिंग करते समय मटमैला होने के लिए तैयार रहें। 

Dholkal Ganesh
Dholkal Ganesh

इसके अलावा, चोटी पर फिसलन वाली चट्टानों पर चढ़ते समय बेहद सावधान रहें। भले ही बादलों के दिनों में आप पूरी घाटी को ऊपर से नहीं देख सकते हैं, बारिश से भरे बादलों की आपके पीछे से गुजरने की भावना बेजोड़ है।सर्दी (अक्टूबर से मार्च) संभवतः ढोलकल चोटी पर जाने का सबसे अच्छा समय है, जहां एकदम ठंडा मौसम, नीला आसमान और हरे भरे पेड़ हैं।

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