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10 Natural Food Of Bastar | प्रकृति से जुड़े आदिवासी खानपान

सालों से बस्तर के जंगलो में प्राकृतिक रूप से उगने वाले फल, सब्ज़ियाँ बस्तरवासीयों के रोज़गार साधन बनता आया है।बस्तर के अधिकतर गाँवो में लोग इन्ही खान पान (Natural Food Of Bastar) पर आश्रित है और ये रोज़गार का साधन भी है।

  • बाँस से बने सामान
  • सल्पी
  • ताड़ी
  • महुआ
  • जंगली फल सब्ज़ियाँ
  • धान
  • सूक्सी
  • चपड़ा
  • बोड़ा
  • बास्ता

छत्तीसगढ़ का बस्तर (Bastar) संभाग ना केवल आदिम जनजाति के कारण विशेष पहचान बनाए हुए है। बल्कि आधुनिकता के परे वो आज भी सरल और सहज ज़िंदगी जीने के लिए पहचाना जाता है।बस्तर में सभी जाति धर्म विशेष के लोग निवास करते है।

लेकिन यहाँ की असल ख़ूबसुरती गोंड,धुरवा,हल्बा,मुरिया,मंडियाँ,भतरा और भी अन्य जनजातियों के कारण बनी हुई है।बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ यहाँ की जीवन शैली को जल,जंगल और ज़मीन को जोड़े नज़र आता है।

यहाँ जन्म से लेकर मृत्यु तक परम्परायें मौजूद है।वही बस्तरवासी के दिनचर्या में जंगल से उत्पादित सामान शामिल है।आइए देखे एक झलक बस्तर (Bastar)के इस अनोखे जोड़ का जो मनुष्य और जांगल के गठजोड़ को दर्शाता है।

बाँस से बनी टोकरी

बाँस से बनी टोकरियाँ बस्तर की दैनिक जीवन शैली का मनो एक अंग है।बस्तरवासी आम बोलचाल की भाषा हल्बी में सामान्य बाँस से बनी टोकरी को टुकनी कहते हैं वही माप और उपयोग के अनुरूप इन्हे टाकरा और दावड़ा भी कहा जाता है।

एक अलग क़िस्म की टोकरी जिसमें मुर्गा-मुर्गी रखा जाए तो उसे यहाँ गोड़ा कहा जाता है। इसके अलावा सूपा विवाह के मौसम में पर्रा-बीजना भी बड़ी मात्रा में बनाये जाते हैं।

food of bastar। bastar villager
Bamboo Art।Food of Bastar। Bastar villager

खाँस बात ये है कि छत्तीसगढ़ में बांस शिल्प के विकास के लिए बस्तर के परचनपाल में छत्तीसगढ़ हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा 1988 में शिल्पग्राम की स्थापना की गई थी।

आदिवासी ग्रामीण शिल्पकारों की कला को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ में शिल्पग्राम स्थापित किए गए ताकि शिल्पकारों को प्रोत्साहन के साथ-साथ वो सारी सुविधाएं मिल सकें ।
जिनसे वे अपनी आजीविका चला सकें और इस कला को जीवित भी रख सकें। बांस के नए सजावटी एवं उपयोगी उत्पाद बनाना सिखाने के लिए असम राज्य से मास्टर ट्रेनर भी बुलाए गए थे। अभी इस शिल्पग्राम में शिल्पकार बांस, लोहे, पत्थर, मिट्टी और सीशल क्राफ्ट से जुड़े काम करते हैं। यहाँ विकसित किये गए बांस के नए उत्पाद अधिकांशतः सरकारी मेलों एवं प्रदर्शनियों में बिकते हैं।

बांस उद्योग को बढ़ावा देने तथा किसानों की आय को बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने बांस की खेती की योजना आरम्भ की है। बांस की खेती में लागत अन्य फसलों की अपेक्षा कम और आय ज्यादा है। बांस की खेती की कटाई तीसरे वर्ष में होगी। उसके बाद प्रति वर्ष कटाई होगी। किसानों को प्रति एकड़ अनुमानित 40 टन बांस प्रति वर्ष प्राप्त होगा जिससे किसानों की डेढ़ लाख की आमदनी होगी।

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  • सल्पी । ताड़ी
  • बस्तर (Bastar) के जंगलो में मिलने वाला पेड़ ताड़ जिससे रस निकला जाता है। वही सल्पी के पेड़ को कुछ लो घर पर ही लगाते है इससे भी रस निकाला जाता है ।मुख्य रूप से ये ज़्यादातर आदिवासी के घरों पर देखने को मिलता है।लोग साप्ताहिक रूप से लगने वाले हाट में इसे बेचते भी है जो इनके आमदनी का जर्या भी है।

    Food of Bastar। Bastar villager
    Food of Bastar। Bastar villager

    बस्तर (Bastar)में लोग विलासावादी है कारणवर्ष यहाँ लोग ज़्यादा मेहनत नहीं करना चाहते ।बस्तर में सभी तीज त्यौहार में जश्न के रूम में इसे लिया जाता है वही बगेर लिंग भेद के प्रसाद के रूप में भी कही कही इसे ग्रहण किया जाता है।ये एक तरीक़े का नशीला पेय पदार्थ है (Food Of Bastar)लेकिन यहाँ के आदिवासी प्रकृति का दिया हुआ सामान आज भी दैनिक रूप में करते है।

    इन्हें भी देखे –

    कछहरी छिलपट डोंगरी। Bastar Villager
  • महुआ । मंद
  • बस्तरवासी जन्म से लेकर मृत्यु तक महुआ से जुड़े है ये कहना ग़लत नहीं होगा।महुआ से बने मंद का उपयोग ना केवल दैनिक जीवन में करते है बल्कि देवी देवताओं को भी अर्पित करते है,लांदा जो गुड़ का भी बनाया जाता है इनके जीवन का एक अंग भी है।

    Mahua।Food Of Bastar।bastar villager

    महुआ को बस्तर(Bastar region) में झड़ने वाला मोती भी कहा जाता है।इसे यहाँ के ज़्यादातर लोग शराब के रूप में सेवन करते है । हलबी बोली में इसे मंद भी कहा जाता है।इसे बस्तर का मोती कहा जाने का कारण ये है की रात में ये फल जब पेड़ से नीचे गिरते है तो ऐसा प्रतीत होता है मानों मोती बिखरी हुई है।इनके कई औषधिक प्रयोग भी है।

  • जंगली फल सब्ज़ियाँ
  • जंगल में उगने वाले एक क़िस्म घास को बस्तरवासी चारोटा लाटा कहते है यानी एक क़िस्म की घास जिसे यहाँ के आम लोग भाजी के रूप में सेवन करते है।ये यहाँ के खान पान (Food Of Bastar)में शामिल है।इसके बीज का तेल निकाला जाता है जो दिया जलाने में काम आता है।यहाँ के बच्चे इस पौधे के पत्ते को तोड़कर उसे मोड़कर धुन निकालकर खेलते है। ख़ास बात ये है की ये पौधे बिना उगाए ज़्यादातर हिस्सों में उग जाते है।

    इसके अलावा जंगलो में मिलने वाले फल जो सीज़न के मुताबित फल देते है जैसे महुआ,इमली,टेमरु,जंगली आम,चार,जामुन ऐसे कई खाद्य सामग्रियाँ जंगल से एकत्र कर हाट में बेचने का काम करते है।

  • धान
  • छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है।वही यहाँ की मिट्टी बेहद उपजाऊ भी है बस्तर में लोग एक ही फ़सल ज़्यादा करते है।धान की खेती के अलावा यहाँ के खान पान में (Food Of Bastar)तिलहन,उड़द,भुट्टा और कोदा की खेती पारम्परिक रूप से किया जाता रहा है इसलिए यहाँ के लोग रोटी के अपेक्षा चावल खाना पसंद करते है।हल्बी भाषी चावल को भात कहते है।

  • सूक्सी
  • Sanjay market ।Food Of Bastar।bastar villager

    बस्तर की आम जनता,सुखी नदी की मछलियों को हल्बी बोली में सूक्सी कहती है।यहाँ के लोगों के पसंदिता खान पान (Food Of Bastar)में सूक्सी मुख्य रूप से शामिल है। वही किसी के मृत्यु के पश्चात भी विश्रान छूकर की घर में प्रवेश करते है।बस्तरवासी भेंडा सूक्सी झोर अपने दैनिक जीवन में शामिल करते है और ये बनाना भी काफ़ी सरल होता है सूक्सी पुड़गा भी इसी का भाग है।

    सूक्सी काफ़ी महगी बिकती है पानसौ से हज़ार रुपए तक यही नहीं चिगड़ी भी नदी में मिलने वाले खाद्य सामग्रियों को विशेष प्रक्रिया द्वारा चूल्हे के आग और धूप से पका का लम्बे समय तक खाने के लिए तैयार किया जाता है यही कारण है की ये महँगी होती है।

  • बास्ता | करील

  • बस्ता जिसे करील भी कहा जाता है दरअसल बाँस के पौधे के इर्द- गिर्द और भी बाँस उगने लगते है क्यूँकि इसकी जड़े ज़मीन में फैली होती है।ये छोटे पौधे बड़े होकर बाँस का पौधा बनता है।बस्तरवासी प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण रहा है।और यहाँ के निवासी प्राकृतिक खान पान (Food Of Bastar)को ज़्यादा महत्व देते आए है।जिनमे से एक है करील जिसे बस्तरवासी आमबोलचाल की भाषा हल्बी में बस्ता कहते है।

    जब बहुत छोटे होते है तो हरे रंग के कवर से पैक होते है लेकिन जब बजार में ये उपलब्ध होती है तो इसे छोटे छोटे पिस के रूप में काट कर बेचा जाता है।किसी भी देश या राज्य में बाँस की माँग ज़्यादा है और उत्पादन कम यही कारण है की सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है।वही दूसरी ओर करील बाज़ारों में कम नज़र आती है।बस्तर के गाँव में निवास करने वाले बस्तरवासी के आमदनी का भी ये श्रोत रहा है इसलिए ये आज भी चोरी छिपे इसे बेचा जाता है।

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