मिट्टी बनी पहचान । Mati Kala Kendra
अपने घुंगरालु बाल, खुशनुमा मिजाज व्यक्तित्व और एक सामाजिक कार्यकर्त्ता के छवि से पहचाने जाने वाले तरुण कुर्राम भोर सेवा समिति के संस्थापक है .कोरोना के दौरान इन्होने एक पहल की और कुम्हारो के मिटते पहचान को फिर से एक नया कायाकल्प देने में जुट गए .
साल 2020 में एक संस्था भोर दंतेवाड़ा में आई, जिसने मिट्टी से रोजगार सृजन को जोर दिया और इस तरह दंतेवाड़ा जिले में खुला माटीकला केंद्र ( Mati Kala Kendra in bastar ) . इस संस्था को चलाने का मूल उद्देश्य उन लोगो को रोजगार देना था जो कृत्रिम रूप से मिट्टी का व्यवसाय जन्म से करते आ रहे है.लेकिन आधुनिकता में वो कही गुम सी हो गई थी .
दंतेवाड़ा जिला प्राकृतिक खूबसूरती और लौह अयस्क के पहाड़ियों से घिरा हुआ जिला है . यहाँ एक गाँव कुम्हारों का बसता है, जो कई पीड़ियों से मिट्टी से बने सामानों से अपने जीवन यापन के लिए आश्रित है .
इस गाँव कुम्हारपारा के सौ में से नब्बे फिसद घर कुम्हारों के है .और सभी मिट्टी के बर्तन तैयार करते है जिसमे हंडी,चूल्हा ,दिए ,सुरई,पतेली,कलंजी ,मिट्टी के खिलौने ,चम्मच और भी बहुत कुछ लेकिन बाजारों में इनकी खरीद अब काफी कम हो चुकी है जिससे इस कुम्हारों का दैनिक आमदनी में सीधा प्रभाव देखा गया .
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चिन्हा क्या है ?
भोर सेवा समिति के तहत चलने वाली एक ऐसी परियोजना जो मिट्टी ( Mati Kala Kendra ) से अलग पहचान बना रही जिसे चिन्हा नाम दिया गया है .तरुण जी इस परियोजना के बारे में कहते है इस परियोजना को कुम्हारों के गाँव में खोलने का एक ही मकसद रहा है .वो है लुप्त होते मिट्टी के कला को फिर से उभार कर रोजगार से जोड़ना .
वो आगे कहते है की कुम्हारों के बच्चे अब कुम्हार नहीं बनना चाहते ,वो डाक्टर ,इंजिनियर या फिर शिक्षक इन्ही सपनो के साथ अब कुम्हारों की सीमितता का तकाजा किया जा सकता है .मै कुम्हार नहीं हूँ.न ही ऐसा कोई व्यक्ति जो बच्चो के सपने के विरुध हो .
एक सामान्य व्यक्ति भी अपने बच्चो को सपने चुनने की आजादी देता है चाहे उसके आकडे हमारे समाज में कम क्यों न हो .लेकिन इन सबके बीच एक बड़ा सवाल है की देश में ज्यादातर बच्चे या युवा कुम्हारों के पेशे के रूप में क्यों नहीं देखते या चुनाव क्यूँ नहीं करते ?
इसका सीधा और सरल एक ही नजरिया मेरे अनुसार है कि कुम्हार के बच्चे उनके पेशे को कम आकने लगे है .या यु कहिये इस पेशे में लोगो को पैसा बहुत कम है जिससे जीविका या खुश हाल जिन्दगी नहीं चल सकती .इसलिए अब कुम्हारों को वक्त के अनुरूप अपने काम को ढालना होगा .
चिन्हा कैसे काम करती है ?
चिन्हा मिट्टी से कला का प्रदर्शन करती है और आधुनिता से जुड़ कर काम करती है .जिसमे मिट्टी के डिजायनर गमले ,मिट्टी से बना लैम्प ,नए आकर के दिए और यदि कोई व्यक्ति कोई डिज़ाइन तैयार करके देता है तो उसे हु ब हु उस डिजाइन का सामान चिन्हा में काम करने वाले बच्चे तैयार करते है .
माटी कला केंद्र ( Mati Kala Kendra ) ट्टी से बने सामानों को रंगीन और सुन्दर बनाकर बाजार में उतारती है वही इस परियोजना में कई लडकियां भी प्रसिक्षण ले रही है .चिन्हा ग्रामीणों के लिए रोजगार सृजन को बढ़ाने का काम कर रहा है .वही लोगो को पुराने समय के करीब भी ला रहा है जब लोग मिट्टी के बर्तनों से खाना पकाया करते है और रसोई में मिट्टी के बर्तन सजे होते थे .
चिन्हा के द्वारा तैयार किये गए मिट्टी की कारीगरी ( Mati Kala Kendra )
चिन्हा ने दिलाई अलग पहचान
43 वर्षीय तरुण कुर्राम का परिवार मूल रूप से मांझिनगढ़ में रहता है लेकिन इनकी पैदाईस बचेली की है .तरुण जी ने सरकारी स्कूल से पढाई पूरी की वही भिलाई के कल्याण महाविद्यालय से बी कॉम की पढाई करते हुए कई सामाजिक संस्थाओ के साथ जुड़ कर काम किया .
मेरा उनसे सवाल था कि आपने इस क्षेत्र और इस गाँव को क्यों चुना इस पर वो हल्का मुस्कुराये और कहा मैंने इससे पहले कई जगह और चालीस से ज्यादा गाँवो में कई प्रोजेक्ट को लेकर काम किया है .वो कहते है मैंने केयर इण्डिया के ग्राम उदय से जुड़कर आगन बाड़ी , महिला बाल विकास और कुपोषण के मुद्दे पर कई सालो तक काम किया फिर मै समर्थन संस्था में सुझावकार्यकर्ता के रूप में मास्टर ट्रेनर रहा .
मैंने बस्तर के दंतेवाड़ा जिले से लेकर नारायणपुर के ओरछा गाँव तक चालीस से भी अधिक समर कैप करवाए है बच्चों के साथ काम किया है . और मेरा मानना है की जैसे मिट्टी को आकर देकर सुन्दर बनाया जा सकता है वैसे है किसी भी गाँव क़स्बा या देश को विकसित करने में बच्चों का ज्यादा योगदान होता है .
यदि बच्चो को सही दिशा निर्देश और सही राह दिखाने वाले हो तो हर बच्चा कोई भी पेशा में एक अलग पहचान बना सकता है इसलिए मैंने अपने इस परियोजना ( Mati Kala Kendra ) का नाम चिन्हा रखा है जो यहाँ कुम्हारों के बच्चों को अलग पहचान बनाने में मदद कर रहा है .
मुझे इस काम में एक अलग पहचान दिलाई पहले सिर्फ एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लोग मुझे पहचानते थे लेकिन अब एक कलाकार के रूप में भी मुझे लोग जानते है .मै शुरुआत से ही ग्रामीण रोजगार को सभी क्षेत्रों से जोड़ने का प्रयास करता रहा हु .बस्तर में बांस का उपयोग ज्यादा होता है .उसे भी हम दंतेवाड़ा जिले में कला का रूप और आधुनिकता से जोड़ने का प्रयास कर रहे है .
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चिन्हा की सफलता
चिन्हा की सबसे बड़ी सफलता पूछने पर कुर्राम जी कहते है कि इस परियोजना ( Mati Kala Kendra ) में अब कुम्हार के बच्चे जुड़ रहे है और इस परियोजना में कुम्हारपारा की दो बच्चियां सेवंती नाग और देवकी सोडी दो ऐसी बच्चियाँ है जो चाक चलाना भी नहीं जानती थी थी लेकिन अब वो यहाँ बहुत कुछ मिट्टी के डिजाइनर सामान तैयार करती है .
Mati kala kendra
इनके साथ और एक बालक सिभु भी इस परियोजना से लगातार जुड़ कर काम सिख रहा है .ये परियोजना का मकसद ही यही है की कुम्हारों के मिटते चिन्ह को वापस लाना जो इनके बच्चे ही कर सकते है .इस परियोजना ये सबसे बड़ी सफलता है की इससे कुम्हार के बच्चे अब इसे पेशे के नजरिये से देखने लगे है .