अमुस (amus) बस्तर के किसानों का पहला त्यौहार क्यों है?
बस्तर में मनाया जाने वाला अमुस (amus) बस्तर में खेतों की सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। अमुस (amus) तिहार हिन्दी कलेण्डर के अनुसार अमावस्या के बाद मनाने वाला बस्तर संभाग के पहला त्यौहार है। इसके बाद ही खेतों की अच्छी उपज के साथ किसान का पूरा साल निर्भर करता है। मान्यता है कि अमावस्या की रात सभी तांत्रिक शक्तियाँ जागृत होती है और इस दिन बस्तर में कई आँचलित प्रथाएँ आज भी निभाई जाती है। जिसमें विश्वप्रसिद्ध दशहरा की शुरुआती रसमें शुरू होती है। अमुस (amus) पर पहला अनुष्ठान मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने पाट जात्रा के रूप में संपन्न होती है । बिलोरी जंगल से लाई गई साल काष्ठ की विधिवत पूजा संपन्न की जाती है । इस काष्ठ से ही दशहरा रथ बनाने में प्रयुक्त औजारों का बैंठ आदि तैयार किया जाता है। परंपरानुसार काष्ठ में बकरा और मांगूर मछली की भेंट भी दी जाती है। गाँवों में बोहरानी प्रथा निभाई जाती है। अमावस्या के दूसरे दिन किसान अमुस (amus) खूटा तैयार करने के लिए भोर होते ही जंगल जाते है और खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की टहनी से बने खूँटे को गाड़ कर अमुस (amus) त्यौहार मानते है।
हमसे जुड़े
गाँव कसोली में सुरेश ने क्यों कहा अमुस (amus) खूटें से उसके खेत को नजर नहीं लगेगी?
गाँव कसोली दंतेवाड़ा का एक छोटा सा गाँव है जहाँ की आबादी ज्यादातर कृषक है। सुरेश भी एक किसान परिवार से हैं और अपने खेत पर ही उनका परिवार निर्भर है। सुरेश बस्तर विलेजर से बातचीत के दौरान अमुस के रसमों,महत्व और मान्यताओं का ज़िक्र किया। वो कहते है कि तेंदू की टहनी काली होती है इसे हम चाकू से बाहरी हिस्से यानी कवर को छील कर उसे और आकर्षक बनाते हैं जिससे सारा ध्यान उस पर जाता है और खेतों को नजर नहीं लगती।
वही भेलवा के पत्तों से कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। सीरीन के फूल से कीट आकर्षित होते है और ख़ुशबू से भी लेकिन जब वो इसके क़रीब आते है तो भेल के पत्तें और सतावरी कीटनाशक का काम करते है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में सतावरी , भेल की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। इसके साथ ही ग्रामीणों का मानना है कि इससे कृषि कार्य के दौरान लगे चोट-मोच से निजात मिल जाती है।
इसे भी देखें – गाँव कसोली में ऐसे मनाया गया अमुस (amus) तिहार
इस अमुस (amus) खूटें को जंगल से लाने के बाद घर के भीतर ना ले जाने का रिवाज है। लेकिन ऊपरी हिस्से में लगने वाली औषधिक फूल और पत्ती ही घर के अंदर और चौखट और बाहर के गेट पर लगाया जाता है।आज सुरेश के छोटे बेटे ने भी अपने खेतों पर अमुस खूटा गाढ़ा और इस परंपरा का हिस्सा बना ये कितनी खूबसूरत बात है जब एक पीढ़ी दूसरे पीढ़ी को संस्कार दे रही है और हम सीख रहे हैं।
क्या हरेली तिहार और अमुस तिहार एक है?
हरेली तिहार छत्तीसगढ़ राज्य का एक प्रमुख त्यौहार है। यह आमतौर पर श्रावण (जुलाई-अगस्त) महीने के अमावस्या के दिन मनाया जाता है। हरेली तिहार का मुख्य उद्देश्य कृषि और खेती से जुड़ा होता है, और इसे किसानों के लिए विशेष महत्व दिया जाता है। दूसरी ओर बस्तर संभाग में मनाया जाने अमुस(amus) तिहार में भी किसानों के लिए विशेष महत्व दिया जाता है। लेकिन दोनों के मनाने की विधियों में भिन्नताएं नज़र आती है।
आप इन्हें भी पड़ सकते है
प्रकृति से जुड़े आदिवासीयों के खानपान
मोहरी बाजा के बिना नहीं होता कोई शुभ काम
बस्तर के धाकड़ समाज में ऐसी निभाई जाती है शादी कि रश्मे
मान्यताएँ तो ये भी है कि इस दिन को शुभ बताया जाता है और यदि गाँव में कोई वैध है तो अपने परिवार में किसी एक सदस्य को आज दिन जंगल ले जाकर उसे जड़ी बूटियों से परिचित करवाता है उसे ज्ञान देता है। इसके साथ ही इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम की सरहद के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर कोई दिन नियत कर मनाया जाता है।
हमसे जुड़े