Nadpally Cave । नड़पल्ली गुफा
आश्चर्य: एक हजार से भी अधिक लोग बैठकर दावत कर सकते हैं नड़पल्ली की भू-गर्भीय गुफा ( Nadpally Cave ) के भीतरयह दुनिया रहस्यों से भरी हुई है इस दुनिया में ऐसे कितने ही रहस्य हैं जिनके विषय में कोई कुछ नहीं जानता, ऐसे कितने ही तिलस्म हैं जिन्हें तोड़कर रहस्यों तक जाना आसान नहीं, जाने कितने ही टोटकों से होकर गुजरी हैं पृथ्वी ताकि उसकी बुनी हुई सधी संरचना को किसी की नजर ना लगे।
जब हम इतिहास खोल कर देखते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि हमारे पूर्वज या तो वैज्ञानिक थे या इतिहावेत्ता या सृष्टि को चलाने वाले कोई देवदूत जिन्हें वेदों का ज्ञान था, जिन्हें मौत से लड़कर कर जीवित लौट आने का ज्ञान था, जिन्हें चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान था।
इतिहास की कंदराओं में हम जितना भीतर घुसने की कोशिश करते हैं उतना ही उनका रहस्य गहराता जाता है।ऐसी ही एक रहस्य भरी दुनिया हैं उसूर की पहाड़ियां, बीजापुर जिले के उसूर ब्लॉक में प्रकृति ने अपना भरपूर प्यार लुटाया है, ग्रामीण मानते हैं कि उसूर की पहाड़ी श्रृंखलाओं में कई सारी देवियों का वास है, कई देवता एक साथ यहाँ निवास करते हैं। इन पहाड़ियों के भीतर कई तरह के खनिज संपदाओं का भंडार छिपा पड़ा है।
कुछ लोग मानते हैं कि पहाड़ियों में सोना भी मिलता है, इन पहाड़ियों में दुर्लभ जड़ी, बूटियों के अलावा भू-गर्भीय गुफाओं की एक लंबी श्रृंखला भी है, चाहे वह बोमरेल की की गुफाएं हो या “दोबे पत्थरों” का गाँव हो या फिर नंबी जलप्रपात, नीलम सरई जैसे जलप्रपात हो यह एक अनोखी दुनिया है जिसके भीतर हम जितना प्रवेश करते हैं उतना ही खोते चले जाते हैं।
उसूर में स्थित नड़पल्ली की गुफा ( Nadpally Cave ) के बारे में बहुत सारी मिथक कथाएं हैं ग्रामीणों का मानना है कि जब राजा महाराजाओं की दुनिया थी उस वक्त राजा एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए इन पहाड़ी रास्तों का उपयोग करते थे रास्ते में आने वाली कठिनाइयों से निपटने व अपनी तथा अपने सैन्य बलों की सुरक्षा हेतु देव शक्ति के रूप में जिस व्यक्ति को अपने साथ लेकर चलते थे उन्हें “ताता मुनेश” कहा जाता था।
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ग्रामीण बताते हैं कि यही “ताता मुनेश” उसूर की पहाड़ियों पर स्थित नड़पल्ली की गुफा ( Nadpally Cave ) में पूजा-अर्चना कर आगे की सफर की तैयारी करते थे इस तरह से यहाँ पूजा करने की प्रथा शुरू हुई।#नड़पल्ली गाँव के करीब होने के कारण इस गुफा का नाम “नड़पल्ली” पड़ गया।
ग्रामीणों का कहना है कि जब “ताता मुनेश” इस स्थान से जाने लगे तो उन्होंने इस गुफा में स्थित देवी की पूजा हेतु गाँव के ही “मल्लाकाका” परिवार को पुजारी नियुक्त कर दिया तब से लेकर आज तक “मल्लाकाका” पुजारी ही पीढ़ियों से यहाँ पूजा -अर्चना करते आ रहे हैं।
ऐसी मान्यता है कि निसंतान दंपतियों के लिए यहां पूजा- अर्चना करना किसी वरदान से कम नहीं है। नड़पल्ली की इस गुफा ( Nadpally Cave ) को ” बेड़म_मल्लेश ” के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि गुफा के भीतर जिस मूर्ति की पूजा करते हैं उनका नाम “बेड़म मल्लेश” है। गुफा के ऊपर चढ़ने पर सामने ही एक और बड़ा सा पहाड़ दिखाई देता है उस पहाड़ को “बेड़म गुट्टा” बोलते है, वहां पहाड़ के ऊपर मैदान है तथा चूल्हे जैसी आकृति के बीच में एक मूर्ति स्थिति है जिन्हें “गोविन्द राज” के नाम से जानते हैं।
गुफा ( Nadpally Cave ) के भीतर देवी की जो मूर्ति है ग्रामीण मानते हैं कि वह दुर्गा का स्वरूप है, गुफा के बिल्कुल सामने एक पत्थर पर अद्भुत सी आकृति उकेरी गई है जिसे द्वारपाल कह सकते हैं। गुफा में प्रवेश करते ही कमर में नरमुंड व दाएं हाथ में कटार तथा आंख के ऊपर भी दो और आँखों जैसी आकृति तथा उसके ठीक ऊपर चन्द्रमा जैसी बिंदी लिए हुए जो प्रतिमा दिखाई देती है उसे “ताता मुनेश” की प्रतिमा मानकर ग्रामीण पूजा करते हैं, ऐसी मान्यता है कि “ताता मुनेश” देवी की रक्षा हेतु आज भी यहीं हैं।
गुफा में प्रवेश करने से पहले “ताता मुनेश” की पूजा करके उनसे गुफा के भीतर जाने की अनुमति ली जाती है। हालांकि यहां तक पहुँचने के लिए बेहद कठिन व दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है बावजूद लोगों की आस्था इस जगह से गहरे तक जुड़ी हुई है। नड़पल्ली गुफा के विषय में “डॉ सुरेश तिवारी” अपनी किताब “बस्तर : पर्यटन, इतिहास और संस्कृति” में अपने शोध आलेख में लिखते हैं कि प्रवेश द्वार के कुछ ही आगे बढ़ने पर भीतर का स्थान चौड़ा तथा छत ऊंची हो जाती है।
यहीं संगमरमरी शिलाखंड की प्रकृति निर्मित भव्य दैवीय प्रतिमा अवस्थित है, जिसे स्थानीय लोग मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं तथा नवरात्र के समय लोग देवी दर्शन हेतु आते हैं। प्रतिमा के निकट गुफा के भीतर स्वच्छ जल का एक झरना है जिसमें पूरे वर्ष भर जल भरा रहता है। पूजा के समय लोग इस झरना में स्नान करते हैं, गुफा के भीतर प्रवाहित होने वाले इस झरना का उद्गम स्रोत गुफा के भीतरी चट्टानों के बीच से हैं जिसमें से निरंतर जलप्रवाह इस झरना के जल को स्वच्छ बनाए रखता है।
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प्रतिमा तथा झरना के बीच ही गुफा की प्राचीनता का जीवंत दस्तावेज के रूप में राखनुमा मिट्टी का ढेर लगा हुआ, कुछ स्थानीय लोगों की मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने वनवास के समय इस गुफा में शरण ली थी। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुफा का निर्माण लाखों वर्ष पूर्व से प्रारंभ हुआ है, पथरीली चट्टानों के बीच की मिट्टी भूगर्भीय ताप व दाब से तथा जलीय प्रभाव के कारण क्षरित होकर रिक्तता पैदा करती है।
जिससे गुफा के भीतरी भाग में राख जैसा अवशेष प्रतिमा के निकट पड़ा हुआ है। सुरंगनुमा इस गुफा का भीतरी मार्ग कुछ स्थानों पर अत्यंत संकीर्ण है, जबकि कुछ भाग एका-एक लंबे चौड़े कक्ष के रूप में परिवर्तित हो जाता है इसी लिए भी यह गुफा अत्यंत अद्भुत है। गुफा सुरंगनुमा स्वरूप में काफी विस्तार लिए हुए है, तथा गुफा दाएं -बाएं अनेक भाग में विस्तृत है। गुफा में आगे बढ़ने पर उत्तरी दिशा में मार्ग अत्यंत संकीर्ण हो गया है। लगभग 100 फीट तक इस संकीर्ण मार्ग पर जमीन के बल शयनमुद्रा में सरकते हुए आगे बढ़ने पर एक विशाल तथा वर्गाकार कक्ष मिलता है, जिसकी लंबाई- चौड़ाई दो सौ फीट से भी अधिक है।
इस कक्ष की छत भी बहुत ऊंची है इस कक्ष की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस कक्ष में एक साथ एक हजार से अधिक लोग बैठकर दावत कर सकते हैं। कुदरत के इस अनोखे करिश्मा को देखने के लिए काफी कष्ट उठाना पड़ता है, संकीर्ण मार्ग में कहीं-कहीं घुटन का भी एहसास होता है किंतु इस विशाल कक्ष में ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त है, इस कक्ष में एक किनारे पर पुनः एक प्राकृतिक झरना, गुफा के भीतर स्थित है, जिस के निकट उत्शैल निर्मित शिवलिंग की आकृति बनी हुई है।
यहां तक बहुत कम लोग आ पाते हैं, इस कक्ष की छत मिट्टी के कारण मटमैली हो चुकी तथा कुछ जीवंत अवशैल रचनाएं अत्यंत मनोहारी है। इस विशाल कक्ष से आगे भी संकीर्ण सुरंगनुमा रूप में दूर तक जाता है। कुछ स्थानीय लोगों ने बताया है कि कहीं-कहीं पर गुफा के भीतर से बनी सुरंग बीच-बीच में काफी लंबे चौड़े कक्षों का निर्माण करती है तथा कई मील आगे जाकर गोदावरी नदी के निकट पहाड़ियों में इस गुफा का अन्य द्वार खुलता है।
जिससे होकर गोदावरी स्नान के लिए द्वापर युग में निवसित पांडव लोग जाते थे। एक ग्रामीण द्वारा बताई गई कि किवंदती के अनुसार इस गुफा में “पांडव” निवास करते थे तथा इसी पहाड़ी में ऊपरी भाग में मंदिर के “भग्नावशेष” हैं जहां पाषाण निर्मित धनुषबाण, गदा तथा अन्य हथियार भग्नावस्था में रखे हुए हैं जिसकी पूजा स्थानीय लोग पारद या शिकार के रूप में करते हैं, आज भी इस स्थान पर किसी जोगी के अज्ञात रूप में आने का विश्वास लोगों में है, तथा गुफा के भीतर से शंख- घंटे की आवाजें अर्द्धरात्रि में कभी-कभी प्रतिध्वनित होने की बात स्थानीय लोग बताते हैं।
इसके अतिरिक्त स्थानीय लोगों में द्वापर युग से संबंधित अनेक दंतकथाएं प्रचलित है।तथापि इस पहाड़ी में पाषाण अस्त्रों के भग्नावशेष आज भी देखे जा सकते हैं जिसकी स्थानीय लोग श्रद्धा से पूजा करते हैं”किवन्तियों के अनुसार इस गुफा में कई सारे सुरंग है माना जाता है कि इन सुरंगों से होकर “सकल नारायण” की गुफा या फिर भद्राचलम, तिरुपति जैसी जगहों पर जाया जा सकता है पर इसके कोई भी प्रमाणित पुख्ता सबूत आज तक किसी के पास नहीं है।
Why is Bastar famous?
पर चाहे जो भी हो नड़पल्ली की गुफाएं ( Nadpally Cave ) एक अद्भुत संसार की रचना करती हैं जिसे देखना जिसे महसूसना और जिसे समझना किसी नई दुनिया की तह तक जाना है। इस लिहाज से देखा जाए तो हम बीजापुर वासियों के हिस्से ऐसी कई सारी अद्भुत धरोहरें हैं जिन पर हमें गर्व है, हमारे पुरखों पर हमें गर्व है, हमारे इतिहास पर हमें गर्व है। हमें इन पुरातिन अद्भुत रहस्यमई संसार का हिस्सा बनाने के लिए नड़पल्ली की गुफाओं तुम्हारा शुक्रिया।
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