बस्तर में शादियाँ (Marriage in Bastar) कई रस्मों से संपन्न होती है। शादी एक दिन की भी होती है या तीन दिन की भी हो सकती है।यहाँ शादी की शुरुआत दूल्हा और दुल्हन के घर देवतेल के रस्म से शुरू होता है जहाँ पूजा के सामग्री के साथ इस्टदेव या पेड़ के नीचे कलस जलाकर की जाती है।ये कलस शादी पूरी होने तक जलाई जाती है।
“ देवतेल की रस्म से शुरू होती है बस्तर की शादी’’ (Marriage in Bastar)
भारत भिभिनताओं से भरा है इसमें कोई दोराय नहीं है लेकिन भारत में शादी को लेकर जो रीति रिवाज, रश्में हो या मान्यतायें, चाहे जितने भी अलग क्यूँ ना हो लेकिन ये भारतीयों के भावनाओं से जुड़े है।
Marriage in Bastar
दूल्हे के स्वागत से लेकर फेरे तक कलस जलाई जाती है।इस रस्म के बाद पंडित चिरचोली की रस्म अदा करता है। जिसमें पंडित सबसे पहले दूल्हा या दुल्हन को हल्दी तेल आम के पत्ते से चड़ाता है।इस रस्म में केवल पुरुष ही भाग लेते है।इसके बाद पसतेला की रस्म निभाई जाती है जिसमें सभी लोग बढ़े,बूढ़े, बच्चे,औरत सभी दूल्हा-दुल्हन को हल्दी तेल चढ़ाते है।शादी के शुभ अवसर पर मोहरी बाजा के बिना कोई भी रस्म अधूरा है वही इनके धुन में सभी इस रस्म को करने के बाद नृत्य करते है।
इसके बाद हल्दी तेल उतारने की रस्म होती है जिसमें आम पत्ता,दुबी,आम छाल से उड़द दाल,चावल,सात हल्दी की गाँठ दोने में रखकर दूल्हा-दुल्हन के सर पर रखा जाता है और ये रस्म उलटा याने सर से पैर की ओर फेरा जाता है।दूल्हे के घर होती होती है लाई फोड़ की रस्म,इस रस्म के लिए आग जलाई जाती है और हांडी में दूल्हे की बहनों द्वारा लाई फोड़ी या बनाई जाती है।इस फोड़ी हुई लाई को फेरे में दूल्हा दुल्हन हाथो में हाथ लेकर सुपनी और दौड़ी में सात फेरे पूरे कर शादी के बधन में बंध जाते है।
कई रस्म है जिनमे मांतरेंगा पूजा शामिल है पंडित ईस्ट देव की पूजा करवाते है दूल्हे को जेनु पहनाया जाता है।बाल बनवाई की रस्म होती है जिसमें बुआ नई साड़ी पहनती है और फूफा दूल्हे के बाल काटते है और बुआ के आँचल में डालते है।कई रस्मों का ज़िक्र मैंने नहीं किया है आप उन रस्मों को कम्मेंट्स बाक्स में कम्मेंट करके ज़रूर बताए।
लेख का श्रेय मेरी माँ को जाता है।