Mohari Baja | मोहरी बाजा

Mohari Baja

बस्तर  में परंपरागत मोहरी बाजा (Mohari Baja) का विशेष महत्व है  पर मोहरी बजाना  भी कोई आसान काम नहीं है इसके लिये लम्बी और गहरी स्वासो की जरूरत पड़ती है फ़ेफडो़ का मजबूत होना बेहद जरुरी है।

मोहरी बाजा (Mohari Baja)

Mohari Baja पर बस्तर में मोहरी बाजा (Mohari Baja)  के बिना कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता मोहरी नगाड़े (drums) और तुड़बुढ़ी के मस्त धुनो का अद्भुत संगम है, जिसे  मोहरी बाजा कहा जाता है तुड़बुढ़ी एक ताल छोटा आकार का बाजा होता है जिसका आकार और माप ताशे के सामान होता है तुड़बुढ़ी का निचला हिस्सा लोहे का बना होता है जिसे लोहार बनाते है इसे नगाड़े के धुन के साथ मिलाकर बजाय जाता है इसका निचला हिस्सा मिटटी का भी बना होता है इसे कुम्हारों द्वारा बनाया जाता है और इसके मुँह पर भैंस की खाल मढ़ी जाती है और इसे बांस की दो तीलियों से बजाया जाता है।

हल्बी  में मोहरी जिसे कहते हैं यह दिखने में चिलम के आकार का होता है। और शहनाई (the clarinet) का ही प्रकार है। आप इसकी तुलना बाँसुरी से कर सकते  है क्यूँकि इसमें सात छिद्र होते है।पर सामने पीतल का बना एक गोलाकार मुख लगा होता है जिससे ये शहनाई जैसा तरह नज़र आता  है।

मोहरी बाजा (Mohari Baja)  के बिना बस्तर में नहीं होता कोई भी शुभ काम

नगाड़ा  और तुड़बुढ़ी दोनों को एक साथ बजाए जाते है, नगाड़ा एक ताल बाजा है जिसे विशेषत देव स्थानों में एवं देवी देवता के अनुष्ठानों के समय बजाया जाता है। और इसे कई देवगुढ़ी और माता गुढ़ी में यह स्थाई रूप से रखे रहते हैं ।बस्तर के माड़िया ,मुरिया जनजाति के कुछ समुदाय  लकड़ी के कल्पनाशील प्रयोग से वाद्य बनाते है।

मोहरी की मधुर ध्वनि से देवी देवताओं एंव देव गुड़ी का वातावरण भक्तिमय हो जाता है।शादी ब्याह मे मोहरी बाजा   की मधुर धुने पैरो को थिरकने को मजबूर कर देती है और नृत्य के कदम मोहरी के सुरो के साथ ताल से ताल मिलाकर थीरकने लगते है मोहरी और नगाड़े की जुगल बन्दी उत्साह का संचार कर देती है।

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छत्तीसगढ़ के बस्तर में परंपरागत मोहरी बाजा का विशेष महत्व है। बस्तर के आदिवासी बहुत ही सरल वाद्यों से अपने संगीत को संयोजित करते है। अपने आस पास उपलब्ध सीमित प्राकृतिक संसाधनों से ही वे जो वाद्य बनाते हैं ।जो बहुत ही अदभुद हैं, यंहा कोई भी शुभ काम मोहरी बाजा के बिना पुरा नही होता है।

मोहरी नगाड़े और तुड़बुढ़ी के मस्त धुनो का अद्भुत संगम को ही मोहरी बाजा कहा जाता है बस्तर के आदिवासी इसका अपवाद नहीं हैं बस्तर के माड़िया ,मुरिया लोग लकड़ी के कल्पनाशील प्रयोग से वाद्य बनाते है।

बस्तर क्षेत्र के विशेष और लोकप्रिय वाद्य हैं जो मुख्यत परम्परिक वाद्य प्रचलन मोहरी शामिल है – शहनाई, नगाड़ा, तुड़बुढ़ी ।

आवाज़ – रेणुका सिंह विडीओ मनोज शर्मा

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